________________
द्वितीय खण्ड / १९४
ManageAX.
PAN
इस घटना पर आश्चर्यचकित रहे । मेरे एक मित्र हैं श्री छगनलालजी बरड़िया। उनकी एक पेशी खाचरौद न्यायालय में थी। दुकान व निवासीय मकान के खाली कराने का मुकद्दमा उनके विरुद्ध था, मैं उन्हें सन् १९६० से वैधानिक सहयोग देता आ रहा था। सन् १९८५ के चातुर्मास काल में उनकी एक पेशी आई। वे मुझे लिवा लेने खाचरौद से उज्जैन पाये। मैं दिल्ली गया हुआ था। मेरे मित्र श्री पुरुषोत्तमजी सुगंधी व मेरे एक अन्य साथी अधिवक्ता श्री किशनस्वरूपजी शर्मा ने श्री छगनलालजी को कहा कि वे खाचरौद चलकर ठीक वैसा ही कार्य करने को तत्पर हैं, जैसा कि मैं करता था, पर छगनलालजी ने पेशी बढ़ाने पर बल दिया और वे मेरे अतिरिक्त अन्य किसी को ले जाने को तत्पर नहीं हुए। इसी टेंशन में श्री छगनलालजी बीमार हो गये और उन्हें सिविल हास्पिटल उज्जैन में भरती होना पड़ा। डॉक्टर से प्रमाण-पत्र लेकर उनके पुत्र खाचरौद गये । न्यायालय से अर्जी देकर समय मांगा किन्तु पेशी दूसरे दिन की ही लगी। इस पेशी की पूर्वसंध्या को मैं दिल्ली से उज्जैन पहुँच गया था। मेरे से छगनलालजी और उनके पुत्र दोनों मिले। उनका एक मुकद्दमा इन्दौर उच्च न्यायालय में भी था। मैंने श्री छगनलालजी को इन्दौर के लिये रवाना किया
और उनके पुत्र को लेकर मैं दूसरे दिन की लगी पेशी के लिये प्रातः कार से खचरौद के लिये रवाना होने लगा। रवाना होते समय मैंने श्री छगनलालजी के पुत्र से यह कहा कि हम पहले महावीर भवन, उज्जैन चलें जहाँ बापजी विराजे हए हैं। उनके दर्शन करें, उनसे मांगलिक सुनें और इसके बाद जैसा छगनलालजी कहेंगे वैसा कुछ हो जाएगा । यदि तारीख बढाने का अवसर या जरूरत है तो जज साहब स्वयं छुट्टी ले लेंगे और किसी तरह की कठिनाई नहीं होगी। इसके पश्चात् मैं तथा छगनलालजी का पुत्र कार से खाचरौद के लिये रवाना हुए । खाचरौद न्यायालय के दरवाजे में प्रवेश होते ही पता लगा कि जज साहब ने आज आकस्मिक अवकाश लिया है और वे बाहर गये हैं । जिसने भी इस प्रसंग को सुना, आश्चर्यचकित रह गया। ९. मेरे साथ ऐसे अनेक प्रसंग आये, जिनमें से कुछ का मैंने वर्णन किया है।
औरों ने भी मुझे कुछ प्रसंग ऐसे बताये किन्तु दूसरों से सुने कोई प्रसंग मैं यहाँ नहीं लिख रहा हूँ। मैं तथा मेरा सारा कुटुम्ब बापजी से.अत्यन्त प्रभावित है। उनकी हम पर अत्यन्त कृपा है । हम उन्हें श्रद्धा से अपने इष्टदेव की भाँति प्रतिदिन स्मरण करते हैं और अपने में पयाप्त शक्ति एव साहस अनुभव
करते हैं। १०. एक विशेषता महासती श्री में और है। वे किसी भी श्रद्धालु को, वह चाहे
जैन हो या अजैन, यह कभी नहीं कहती “माम् एकम् शरणम् ब्रज" किन्तु योगीराज की तरह उनकी भावना प्रत्येक श्रद्धालू को अपने अपने इष्ट की ओर आकर्षित रहने में बल प्रदान करती है ।
Jain Educatun international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org