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· देवकृत भविष्यवाणी | २११
जिन्दगी का अनुभव
तब मैं करीबन ७-८ बरस की थी। अपने ननिहाल के गाँव केबाण्या । (नसीराबाद) में एक कुएँ पर चली गई। वहाँ खडी-खडी पानी भरने वालों को देख रही थी। करीबन एक फर्लाग के फासले पर बहुत बड़ा तालाब था । उस समय बड़ी भयंकर आँधी आई । साथ में वर्तुलाकार पवन भी, जिसे मारवाड़ में बतुलिया कहते हैं। उसके बीच में मैं आ गई और मेरे पैर जमीन से ऊपर उठ गये । मैं उस बतुली के साथ ही उड़ चली। वहाँ पर खड़े हुए लोग शोर मचाने लगे, परन्तु मुझे बचा नहीं सके । तालाब से मुश्किल से १-२ हाथ का फासला रहा होगा कि मानो किसी ने मुझे अपनी बाहों में पकड़ लिया और मेरे पैर जमीन पर टिक गये । लोगों ने सन्तोष की साँस ली । सूचना मिलने पर घरवाले वहाँ पहुँच गये । मुझे सुरक्षित देखकर पिताजी ने गले से लगा लिया और उनकी आँखों से हर्ष के आँसू बहने लगे। इस घटना से गाँव में अनेक तरह की चचाय भाइ, जिसमें अज्ञात शक्ति का सहयोग है, यह चर्चा प्रमुख थी।
उसी गाँव में एक बार लड़ते हुए गायों और भैंसों के बीच में से भी सुरक्षित बच गई । जबकि लोग भयभीत होकर इधर उधर भाग चुके थे।
मेरे पिताजी मोतीपुरा नामक गाँव में जो कि ३-४ मील के फासले पर था, दूकान करते थे। दोपहर के समय मुझे पिताजी की बहुत याद आई और मैं रोने लगी। अनायास ही मेरे कदम मोतीपुरा की ओर बढ़ गए। मैं अपने पिताजी के पास कैसे पहुँची, रास्ता कैसे तय किया; यह मुझे ध्यान नहीं। पिताजी ने अकेले आने का कारण पूछा, परन्तु मैं बिल्कुल अनभिज्ञ थी।
देवकृत भविष्यवाणी D साध्वी सुप्रभाकुमारी 'सुधा' एम. ए., पी-एच० डी.
जन-जन की आस्था के आयाम, परम श्रद्ध या पूज्य गुरुवर्या श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' के दादा गुरु, मारवाड़ क्षेत्र के महानतम सन्त, समाजसुधारक स्वामीजी श्री जोरावरमलजी म. सा० ने आठ वर्ष की लघु वय में अपनी पूज्य मातुश्री मगनादेवीजी के साथ संवत् १९४४ वैशाख शुक्ला तृतीया को जैन भागवती दीक्षा अंगीकार की। आपके पूज्य गुरुदेव का नाम पूज्य श्री फकीरचन्दजी म० सा० था। आगम-शास्त्र की विलक्षण ज्ञाता, अनेक युवाजगत् को अध्यात्म की ओर बढ़ाने की दिशा में प्रेरणाप्रद उपदेश प्रदात्री महासती श्री चौथांजी म० सा० के शुभ-सान्निध्य में आपकी मातुश्री ने दीक्षा-व्रत ग्रहण किया।
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