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द्वितीय खण्ड | २१८
थी और बड़ी गुरु बहन श्री झमकू जी म. सा. की वृद्धावस्था थी, ऐसी स्थिति में तीन वर्ष तक म. सा. की सेवा में रही। इस बीच मैंने आपके दिव्यजीवन को बहुत निकट से देखा । आपकी प्रकृति की एक-एक लहर अलौकिक है, जिसे शब्दबद्ध नहीं किया जा सकता । मेरी भावना आपसे दीक्षा लेने की थी लेकिन इस जन्म में यह सौभाग्य मझे प्राप्त न हो सका। मेरी यही कामना है कि अगले जन्म में मैं संयम लेकर आत्मसाधना के मार्ग पर चलूं । संयम मार्ग पर सदैव आगे बढ़ने वाली गुरुवर्या युग-युगों तक ज्ञान की प्यासी जीवात्मा को धर्मामृत पिलाती रहें, यही मेरी कामना है।
किश्ती को किनारा
0 नवरतनमल चौरड़िया
मेरा पूरा परिवार (शासनसेवी स्वामीजी श्री ब्रजलालजी म० सा० एवं युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी म. सा. तथा) गुरुणीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा० 'अर्चना' के प्रति सदैव श्रद्धावनत रहा है । श्रद्धया गुरुणीजी श्री अर्चनाजी म० सा० के महानतम गुणों के विषय में पूज्य माताजी से समय-समय पर सुनने को मिलता है कि आपके नाम से अनेक चमत्कार होते हैं। यह बात मेरे स्वयं के अनुभव से भी पुष्ट हो जाती है।
एक बार मैं दुकान में बैठा था। अचानक तीन चार आदमी छापा लगाने वाले आ धमके । (मैंने बहुत-बहुत कोशिश की कागजातों को छिपाने की), मगर मैं उन्हें छिपा नहीं सका और वे पकड़े गये। कोर्ट केस बन गया था। कोर्ट भी साधारण नहीं था, सीधा सुप्रीम कोर्ट में केस पहुँच गया । सुप्रीम कोर्ट में केस को जीत पाना मेरे लिए असम्भव था । आठ दिन के बाद तारीख थी। मैंने छः दिन तो खुब दौड़-भाग करके मन्त्रियों एवं बड़े-बड़े प्रतिष्ठित व्यक्तियों से सम्पर्क साधा, लेकिन किसी का प्रयास इसमें सफल नहीं हो सका । इसी चिन्ता में निमग्न होकर मैं बैठा था, कि इतने में मेरे माताजी एवं बड़ी बहिन ने आकर कहा, नवरतन ! तुम एक बार प्लेन से उज्जैन जाकर गुरुणी सा० (अर्चनाजी म. सा०) की मांगलिक सुनकर आ जाओ, तुम्हारा काम शत-प्रतिशत हो जायेगा । लेकिन मैंने अपनी विवशता व्यक्त करते हुये कहा कि मैं इस समय नहीं जा सगा क्योंकि दो ही दिन केस के शेष बचे हैं। तब उन्होंने सलाह दी कि यदि तुम अभी नहीं जा सकते हो तो केवल बोलवा ही कर दो कि “यदि काम निपट जायेगा तो मैं अर्चनाजी म० सा० की मांगलिक सुनने जरूर उज्जैन जाऊँगा।" यह बात मेरे
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