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द्वितीय खण्ड | २१४
भता से नहीं निभ सकतीं जितनी की आत्मजागृति से स्वयं की स्वयं पर लो हुई वचनबद्धता, मन में महाराज सा. को साक्षी जानकर।
कभी भारी हा मन उनकी तस्वीर के सामने या मन में बसी उनकी मूरत के सामने रोकर हल्का हो जाता है मानो मां की गोद मिल गई हो। कभी। उनके चेहरे पर की सदाबहार मुस्कान एक सहपाठिनी सा ऐसा भास देती है कि मन की छोटी से छोटी बात भी उनके समक्ष कह सकने में कुछ हिचकिचाहट नहीं होती।
उनका प्रोजस्वी, परन्तु अत्यधिक सरल भाषा में दिया हुअा व्याख्यान जिसे विभिन्न भाषाओं के गीत, दोहों और कहानियों के पुट से और भी रोचक बना देती हैं, बहुत ही हृदयग्राही होता है और उसे सुनते हुए मन कभी थकता नहीं।
कुछ ऐसी ही मिली जुली भावनाओं की प्रतिमूर्ति हैं श्री म. सा. मेरे लिये।
अन्त में एक बात बता देना आवश्यक समझती हूँ-वो ये कि महासती श्री उमरावकंवरजी म. सा. के प्रति मेरे मन में प्रगाढ़ श्रद्धा का बीज अंकुरित करने का सारा श्रेय जाता है मेरे पति श्री डॉ० राज धारीवाल सा. को जिनकी अन्तरात्मा ने सिर्फ एक गुरु को माना है और वे हैं श्री म. सा., उनके मन में म. सा. के प्रति अटूट विश्वास है, अनन्य श्रद्धा भक्ति है।
मैं श्री म. सा. के मंगल आशीर्वाद की सदैव कामना करती हूँ।
एक श्रावक का आत्मकथ्य, जिसकी जीवन नैया मांगलिक के सहारे चल रही है. मेरे जीवन की पथप्रदर्शिका
- एन० एम० भण्डारी
सर्वप्रथम मैं आदरणीय स्वर्गीय श्री जयमलजी म. सा., स्वर्गीय श्री ब्रजलाल जी म. सा., स्वर्गीय श्री मधुकरजी म. सा. व श्री उमरावकुंवरजी म. सा. को सादर वन्दना अर्ज करता हूँ।
मैं आदरणीय स्वर्गीय श्री मधुकरजी म. सा. का अत्यन्त आभारी हूँ जो मुझे हमेशा कहा करते थे कि “तू बहुत भाग्यशाली है"। मैं श्रादरणीय श्री उमरावकुंवरजी का भी अत्यन्त आभारी हूँ जिनके मांगलिक के सहारे आज मैं जिन्दा हूँ। मुझे जिन्दगी में कुछ भी नहीं मिला है, डैडी मम्मी के होते हुए भी जन्म से लेकर आज तक उनके स्नेह के लिए तरसता रहा हूँ, न ही संकट के समय किसी रिश्तेदार का
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