________________
Jain Education International
द्वितीय खण्ड / १८८
बन्द रखना पड़ता था । मैं जब खाचरौद से संखवास गया, उसके पिता ने अपने पुत्र की स्थिति बतलाते हुए मुझे कहा कि मैं दो साल से बड़ा दुःखी हूँ। मैंने बाईसा के बताए हुए नवकार मंत्र का जाप किया और चरणों की धूल उसको दी। उसने जोधपुर जाकर अपने पुत्र सांवतराम को मेरे कथनानुसार महाराज सा० के चरणों की धूल पानी में घोलकर पिलाई। पिलाने भर की देर थी कि लड़का एकदम ठीक हो गया । अपने पिता से कहा- पापा ! कल मुझे स्कूल जाना है और परीक्षा देनी है । बिना पढ़ाई किए उसने दसवीं की परीक्षा भी दे दी। अब वह पूर्णतः स्वस्थ है | सावंत और उसका पूरा परिवार बाईसा म० सा० का हृदय से श्राभार एवं उपकार मानता है ।
मेरे जीवन में तो ऐसी कई चमत्कारपूर्ण घटनाएं घटित होती रहती हैं । यदि बताने लगूं तो एक पुस्तक ही तैयार हो जाय । फिर भी एक-दो प्रसंग तो लिख ही देता हूँ, जिनसे दूसरों को भी प्रेरणा प्राप्त हो । मेरे बड़े बाईसा (बहिन ) की लड़की, जिसका नाम राजकुमारी है, जो कुचामण गाँव के ठाकुर की पुत्री है, को कई वर्षों से विचित्र अनुभव होते रहते थे । घण्टों मूर्च्छित अवस्था में रहती । घर वालों ने बीमार समझकर बहुत उपचार करवाए, पर सब व्यर्थ गया । एक रात को उसे स्वप्न में श्री बाईसा म० सा० 'अर्चना' जी के दर्शन हुए। उसने परिचय पूछा तो कहा - मेरा नाम उमरावकुंवर है । उसके बाद में बाई को घर वाले बिलकुल परे - शान नहीं करते हैं । उसके शरीर से इतनी सौरभ निकलती है कि आसपास का वातावरण सुगंधित हो उठता है । पूरा शरीर प्रकाशित है । और भी कई विचित्र बातें होती रहती हैं। अब वे म० सा० श्री के चरणों में आने के लिये उत्कंठित हैं ।
इसी प्रकार मेरी सात वर्षीय पुत्री इचरचकुंवर को भी बाईसा म० सा० के बताये हु नवकार मंत्र पर बहुत श्रद्धा है । जब कभी घर में किसी को बुखार आ जाए या कोई बीमार हो जाए, यहाँ तक की गाय-भैंस तक को भी नवकार मंत्र सुना देती है, म० सा० का आया हुआ पत्र फिरा देती है तो सब कुछ ठीक हो जाता है ।
भगवान् से में यही प्रार्थना करता हूँ कि ऐसे सन्तों की कृपा मेरे जैसे अकिंचन पर, दीन-दु:खियों पर सदा बनी रहे। वे तन-मन से स्वस्थ एवं प्रसन्न रहते हुए भगवान् की भक्ति के साथ दूसरे जीवों का भी कल्याण करते रहें ।
For Private & Personal Use Only
DO
0
www.jainelibrary.org