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चमत्कार की मूर्ति महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना'
अभयकुमार जैन, एडवोकेट
१. अध्यात्म-जगत् की परम साधिका, काश्मीर-प्रचारिका, प्रवचनशिरोमणि
मालवज्योति परमश्रद्धया महासती उमरावकुंवरजी 'अर्चना' के दर्शन का व प्रवचन सनने का सअवसर पहली बार मिला, जब महासती श्री उज्जैन होते हुये सन् १९८३ में इन्दौर चातुर्मासार्थ पधारी थीं। पावन सलिला गंगा के लिये कहा जाता है "दर्शन, मज्जन, पान, त्रिविध भय दूर मिटावत" उसी तरह यदि महासती श्रीजी के लिये कहा जाय कि "दर्शन, वन्दन, श्रवण-त्रिविध भय दूर मिटावत" तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जिस श्रद्धालु को शुभ सान्निध्य मिला है, उसने यह अनुभूत किया है। ३. महासती श्री की श्रुति व स्मृति असोम है। आपकी सरलता व सरसता हृदय
को छ लेती है। आपकी साधना उत्कृष्ट कोटि की है। उसके कुछ विशेष संस्मरण में इस दीक्षा स्वर्ण-जयन्ती के शुभ अवसर पर पाठकों के सम्मुख
रखंगा। ४. दिनांक १६-७-८३ को मुझे उज्जैन से सेंधवा वहाँ के वर्ग २ के व्यवहार
न्यायाधीश महोदय के सम्मुख प्रकरण ४१ए : ८२ मूलवादी गुलाम अब्बास --वि-सैफुद्दीन में सैफुद्दीन की ओर से पक्ष समर्थन करने को जाना था। वादी गुलाम अब्बास ने एकपक्षीय अस्थायी निषेधाज्ञा सैफुद्दीन के विरुद्ध ले रखी थी, दिनांक १६-७-८३ को सैफुद्दीन की ओर से एकपक्षीय दी गई अस्थायी निषेधाज्ञा को निरस्त करवाना था। वैसे कठिन था, उस केस में विरुद्ध पक्ष की ओर से इन्दौर के प्रसिद्ध अधिवक्ता भी सेंधवा न्यायालय में तर्क के हेतु आने वाले थे। मैं अपने पक्षकार सैफुद्दीन व अपने एक सहयोगी श्री प्रभाकर निगुड़कर के साथ सेंधवा के लिये उज्जैन से रवाना हया । जैसे ही हमारी कार सूबह ७।। बजे इन्दौर जानकी नगर जैनभवन के पास पहुँची. मैंने ड्राइवर से कार रुकवाई व अपने सहयोगी श्री निगुड़कर से कहा कि मैं महासती श्री के दर्शन करके आता हूँ, तो श्री निगुड़कर बोले कि मैं भी चलं तो मैंने उत्तर दिया-सहर्ष । महाराजश्री तीसरी मंजिल पर विराजमान थे। मैंने तिखुत्तो के पाठ से वन्दना अर्ज की। तत्पश्चात् मांगलिक सुनाने के लिये निवेदन किया। मांगलिक सुनी और मैं तथा मेरे साथी सेंधवा रवाना होने के लिये नीचे आ गये । नीचे वराण्डा में एक अत्यन्त वृद्ध व अशक्त व्यक्ति
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