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द्वितीय खण्ड | १९०
मिले । उन्होंने मुझसे पूछा कि बापजी के दर्शन कर लिये तो मैंने कहा हाँ। किसी कार्य से जा रहे हो, मैंने कहा-मैं वकील हूँ। अपने पक्षकार सैफुद्दीन, जो नीचे खडे थे, उनको बताकर के कहा कि इनके मकदमे में पक्ष-समर्थन करने सेंधवा जा रहा है। इस पर वद्ध महाशय बोले-तो सुनो, आज तुम्हारा काम सोलह आने हो जावेगा, और वह भी बिना किसी मेहनत के । मैंने सुनाअनसुना कर दिया, वृद्ध महाशय के कहने पर ध्यान नहीं दिया। इस पर वृद्ध महाशय बोले, “मेरा कहा यदि गलत निकले तो आप मेरे मुख पर थूक देना, मेरा पता........है, और मेरा नाम........है। कृपया पाठकगण मुझे क्षमा करें, मैं उन महाशय का नाम व पता सेंधवा पहुँचने के पूर्व ही भूल चुका था, क्योंकि मैंने उस वक्त ध्यान ही नहीं दिया था। वह नाम व पता मुझे कभी याद नहीं आया, और न उन महाशय के कभी दर्शन ही हए। मैंने उन वृद्ध महाशय के उपर्युक्त रूप में कहने पर भी उनकी पूर्ण उपेक्षा की, पर उनकी जो बापजी के प्रति श्रद्धा थी, उसकी सराहना अवश्य की । सेंधवा पहुँचे, बिना किसी व्यवधान के । न्यायालय में पुकार हुई, मैं और मेरे साथी श्री निगुड़कर व पक्षकार सैफुद्दीन न्यायालय के कक्ष में खड़े हो गये, मेरे साथी श्री प्रभाकर निगुड़कर, मैं जो बड़ा-सा बस्ता किताबों का ले गया था, उसे खोलने के लिये उतारू हुए। मैंने कहा ठहरो, विरुद्ध पक्ष को प्रा जाने दो। हमारे विरोध में श्री गुलाम अब्बास व उनके स्थानीय अभिभाषक न्यायालय से बाहर खुले मैदान में जहाँ "पुकार" पहुँच रही थी, खड़े थे। वे न्यायालय में नहीं पाये । एक घण्टे के अन्तराल में चार-पाँच बार पुकार हुई, पर श्री गुलाम अब्बास व उनके स्थानीय अभिभाषक पुकार सुनते रहे, न्यायालय के कक्ष में नहीं आए। न्यायाधीश महोदय ने लगभग एक घण्टे तक श्री गुलाम अब्बास व उनके अभिभाषक की प्रतीक्षा की एवं अन्त में उनके अनुपस्थित रहने पर प्रकरण उनकी अनुपस्थिति में निरस्त कर दिया व एकपक्षीय पूर्व में दी गई अस्थायी निषेधाज्ञा भी निरस्त कर दी। प्रकरण का व्यय भी हमारे पक्षकार सैफुद्दीन को दिलाया गया। इतना हो चुकने के बाद मेरे और मेरे साथी श्री निगुड़कर के मुख से निकला कि यह तो बापजी का चमत्कार है । बाद में मैंने उन महाशय को, जिन्होंने भविष्यवाणी की थी, बहुत ढूंढा पर वे नहीं मिले व उनका नाम व पता भी याद नहीं रहा। क्योंकि उन महाशय के कथन को हमने पूर्ण उपेक्षा की थी। यह घटना दिनांक १६-७-८३ की है। उस दिन हमारा काफी समय बच गया, इस पर हम वापसी में जुलवानिया आये और जुलवानिया से एक प्राचीन जैन तीर्थ "ऊन” गये, प्राचीन मन्दिरों में स्थित भव्यमूर्तियों के दर्शन किये। दूसरा अवसर है मेरे कुटुम्बियों के दो प्रकरणों का। मेरे कुटुम्बियों ने उज्जैन में खड़े हनुमान के पास स्थित एक मकान क्रय किया था। इस मकान के सम्बन्ध में श्री नरेन्द्रकुमार, जो मकान पर काबिज थे, ने दो प्रकरण उच्च न्यायालय इन्दौर में मेरे कुटुम्बियों के अन्तरणकर्ताओं के विरुद्ध प्रस्तुत किये
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