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ज्ञान से दीवलो / १८३
प्रातःस्मरणीय बाईसा राज श्री १००८ श्री श्री उमरावकुंवरजी म० सा० के चरण-कमलों में योगी री बारम्बार वन्दना स्वीकार हुवे । आपरा बारा में haणों सूरज रे सामी दिवलो जोवणो है । आपरो ज्ञान र ध्यान सागर ज्यूं गहरो है जरी कोई थाह नी ले सके । मारे मायने तो अतरी बुद्धि कठे क आपरी शक्ति
थाह ले सकूं । प्रापरी महमा अधिक है किण शब्दां में वर्णन करूं । क्यूं के महिमा अधिक शब्द कम और लोग भी समझे चापलसी, वा मने स्वीकार कोनी और आपरा मुख पर ज्यादा शोभा म्हारा सूं करिजे भी नहीं ।
कांई करू बाई सा०, पागल जो हूँ । आपने पेले भी लिख्यो क आप पारब्रह्म सुं हंसने चेतावण वास्ते शरीर धारण करने पधारिया हो सा । पारब्रह्म सूं जो कोई आवे जन्म-मृत्यु नहीं होवे सा । दुखियाँ री पुकार सुण र संत आ जावे व हंसा ने चेता र वापस आपणी मर्जी सूं सुधाम पधार जावे । अबे म्हारी आत्मा इतरी तो निर्मल बेगी क प्रापरा श्रात्मस्वरूप रा दर्शन म्हे प्रठे ही कर सकूं । अबे भी मारी आत्मा पर केई तरह रां आवरण पड़या है सो दूर होवतां होवतां होवेला । आपांरी जल्दी सूं होवे कोनी |
आप जको लक्ष लेइने शरीर धारण करियो बिने पूरी लगण सूं निभा रहिया हो सा । ना खावण री चिन्ता, ना प्राराम री । सारा दिन श्रावण जावण वाला i हँस हँस ने समभावता रहवो सा । कदई प्रापरा मुख पर क्रोध री झलक कोनी देखी । यो सर नी तो आयो और न भावी में प्राविजे । वा, हिज सदा सहेली मुस्कान सूं मुस्कराता प्रत्यक्ष देख रहियो हूँ सा । प्रा सब आपरे ऊपरां गुरुदेव री ही कृपा है सा । आपतो ज्ञान प्रकाश रो दीवलो हो । दीवला ने देख ने अंधेरा में भटक्योड़ो मारग पा जावे मंजिल पर नी पहुँचे तो सुमारग तो मिले।
पर दीवलो तो आगम सोचे कि मारे नीचे कित्तो अंधेरो है । सोच-सोच ने निश्वास छोडे क्योंकि वो आपणे उजास के साथ श्रापणी परछाई भी देखे । उजास ही यदि देखतो वे तो अहं या जावे । इण कारण सूं परछाई ने भी देखे और काँपे म्हारे में कमी है । मैं दूसरां ने मारग दिखाऊँ, उजास देवूं और म्हारा नीचे ही अंधेरो ।
तो बाईसा दिया वाली कथा आपरी ही है सा । श्रा परछाई तो सामने परे । परे समान ही कोई संत महापुरुष प्रावे तो विण रा दर्शन सूं दूर हो सके क्यूं क दिवलो दिवलां ने जला सके । उण री परछाई भी उणरा उजास सूं भाग जावे ।
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