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सन्तों का जीवन उस वृक्ष की भांति होता है जिसकी छाया में दूर से थक कर आए
पथिक को विश्रांति मिलती है.
से
स्थूल
सूक्ष्म
डॉ. जे. पी. गुप्ता
प्राचार्य श्री प्राज्ञ महाविद्यालय, विजयनगर
की ओर
पूजनीय गुरुणीजी श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० की प्रेरणा से मैं गत वर्षों से योगसाधना में प्रवृत्त हूँ । मुझे आज भी वह दिन याद आ रहा है जब पूज्य प्रवर्तक श्री पन्नालालजी म० सा० की जन्मजयन्ती के अवसर पर मैं विजयनगर के स्थानक में गया था । महासतीजी का प्रवचन चल रहा था - 'हमारे अन्तर् में एक आध्यात्मिक जीवन हो सकता है, एक स्वर्ग राज्य हो सकता है जो किसी बाह्य सत्ता के साधन या सूत्र पर निर्भर नहीं करता, आन्तरिक जीवन का आध्यात्मिक महत्त्व है और बाह्य का मूल्य वहीं तक है, जहाँ तक वह आन्तरिक स्थिति को व्यक्त करता है।' उनके प्रवचन का एक-एक शब्द मेरे अन्तर की गहराइयों में उतरता जा रहा था । मुझे लगा जैसे मैं अन्धकार में प्रकाशमान किसी अर्चनादीप को देख रहा हूँ । उस दिन के बाद मैं प्रवचन सुनने के लिए नियमित रूप से जाने लगा । मुझ जैसे नास्तिक को अध्यात्मोन्मुख देखकर सभी विस्मित थे । आज मुझे पच्चीस वर्ष पहले की एक ज्योतिषी की भविष्यवाणी याद आती है जिसने मेरी जन्मकुण्डली देखकर कहा था कि आपका परिचय अमुक वर्ष में एक जैन साध्वी से होगा जो आपकी आत्मा का परिष्कार करेगी ।
महासतीजी की प्रेरणा से ही ध्यानयोग में मेरी अभिरुचि हुई । मैं नित्य ध्यानयोग करता हूँ जिसमें मुझे असीम शान्ति अनुभव होती है । समय-समय पर मुझे ग्रात्मानुभूतियाँ भी होती हैं । ध्यानयोग की अवस्था में मेरे मस्तिष्क में सहस्रदल कमल भी खिल जाता है और मैं एक अद्भुत शांति में डूब जाता हूँ, इस स्थिति में अनिर्वचनीय श्रानन्द की अनुभूति होती है । मैं महासतीजी के दर्शन पाने के लिए सदैव लालायित रहता हूँ। मेरी ईश्वर से यही कामना है कि मुझे हमेशा म० सा० श्री का आशीर्वाद मिलता रहे और मैं निरन्तर आत्म-कल्याण के मार्ग पर बढ़ता रहूँ ।
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