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श्रीमती थांवरबाई का ९६ दिन का संथारा विज्ञान जगत के लिए चुनौती था.
अभूतपूर्व सांथारा । इन्दरमल चण्डालिया, खाचरौद
पूज्य महासतीजी श्री उमरावकुंवर अर्चनाजी म. सा. का सन् १९८६ का चातुर्मास प्रबल पूण्योदय से हमारे संघ को मिला।। ___खाचरौद के इतिहास में यह अभूतपूर्व चातुर्मास माना गया । जैन, जैनेतर सभी ने इनका बहुत लाभ लिया । साथ ही हमारे संघ में म० सा० की प्रेरणा से चन्दना किशोरी मंडल, पार्श्वनाथ स्वाध्याय मण्डल, स्वधर्मी सहयोग समिति की स्थापना भी हुई और नानाविधि तपस्यायें भी हुई। चातुर्मास में अनेक लोगों ने मुझे अपने दिव्य अनुभव बतायें किन्तु मुझे विश्वास नहीं हुआ। दि० १०-११-८६ को रात्रि में मुझे म० सा० के दर्शन हुए। मैंने वन्दना के पश्चात् कहा बाई (माताजी) की तबीयत ठीक नहीं है, म. सा० ने फरमाया, अब आप धर्मध्यान सुनाते रहना। यह सुनते ही मेरी नींद खुल गई और प्रातः मैंने यह स्वप्न म० सा० को बता दिया । म० सा० ने वही बात कही कि धर्मध्यान सुनाते रहना । संयोग की बात एक-दो दिन बाद ही माताजी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई । डॉ० ने जवाब दे दिया। दि० १७-११-८६ को म. सा० का विहार भी हो गया। दो दिन बाद ही पुनः पधारना पड़ा। उसी दिन हम लोगों की विनती और माताजी की गम्भीर हालत देखकर म० सा० ने माताजी को संथारा के प्रत्याख्यान करवाये । जबकि डॉ० ने घण्टे दो घण्टे की बात कही, वहीं माताजी का संथारा ९६ दिन तक चला और करीबन ३० साल से चले आ रहे असाध्य रोग चार-पाँच दिन में ही समाप्त हो गये। चौथे दिन माताजी को पूज्य श्री जयमल्ल जी म. सा० के दर्शन हए। उसी दिन से उनका हकलाना, मुड़ा हुआ हाथ जिसका कि इलाज बम्बई के डॉ. ने भी मना कर दिया था, ठीक हो गया। ये सारा श्रेय पूज्य म० सा० को है ऐसा माताजी हमेशा कहा करती थी और प्रतिदिन दौ-दो घण्टे म० सा० माताजी को धर्मध्यान सुनाया करते थे। संथारे के अन्तराल में करीबन ७२-७३ साधुसाध्वियों ने दर्शन दिये । लेकिन आखरी समय तक माताजी की हार्दिक श्रद्धा एवं स्नेह म. सा. के प्रति अपूर्व रहा और माताजी ने यह वचन भी दिया कि मैं जरूर आपको सहयोग दूंगी। मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूँ कि मुझे थाँवरबाई जैसी माँ मिली और म. सा. श्री अर्चनाजी की असीम कृपा !
गुरु महाराज से यह प्रार्थना है कि मैं और मेरा परिवार हमेशा धर्मध्यान में अग्रणी रहकर अपनी आत्मा का भी कल्याण करे। हमारे ऊपर पूज्य महासती जी की कृपा हमेशा बनी रहे, साथ ही मैं उनके दीर्घजीवन की मंगल-कामना करते हुए शत-शत वन्दन करता हूँ।
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