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धर्मचर्चा और अन्तःप्रेरणा परम शांति का मार्ग सुझाती है.
अन्तस्तल पर अमृतवर्षा - सन्त मृगारामजी, बिलाड़ा-बाणगंगा
यद्यपि मैंने गुरुदेव गुलाबदासजी म. सा. एवं अन्य प्रतिष्ठित लोगों से महासती श्री उमरावकुंवरजी अर्चना म. सा. के विषय में कई बार सुना था। लेकिन आपके दर्शन का सौभाग्य लाखन कोठरी अजमेर के चातुर्मास में ही प्राप्त हुआ । उनके व्यक्तित्व की मुझ पर अमिट छाप पड़ी।
मैं बहुत छोटी उम्र में ही संन्यासी बन गया था । यद्यपि मेरी साधना गुरु महाराज की कृपा से अच्छी चल रही थी, लेकिन पापकर्म के उदय से मैं तीन महीनों तक बहुत विचलित रहा । मन में कई प्रकार की विकृतियाँ उभर आयीं और मैं बुरी तरह से घबरा गया । जब मैं नोखा माजी साहब के पास गया तो उन्होंने मुझे राय दी कि अजमेर श्री अर्चनाजी महाराजसाहब के पास जाऊँ । अन्तर्रेरणा ने भी साथ दिया और मैं तत्काल अजमेर के लिये रवाना हो गया। मैं लाखन कोठरी पहुँचा तब महासतीजी के प्रवचन हो रहे थे। मैं चुपचाप जाकर बैठ गया और एकाग्रता से प्रवचन सुनने लगा । आपके प्रवचन का एक-एक शब्द अमृत वर्षा कर रहा था। मुझे परम शांति की अनुभूति हुई । प्रवचन के बाद महासतीजी ने मेरा परिचय जानना चाहा। परिचय के मध्य मैंने अपनी व्यथा सामने रखी। उन्होंने बहत ही आत्मीयता के साथ समझाते हुए मेरी शंकाओं का समाधान किया । उस दिन के बाद मैं पूर्णरूप से अपनी साधना में स्थिर हूँ। समय-समय पर उनकी शिक्षाप्रद बातें एवं साधना सम्बन्धी चिन्तन मेरे मन-मस्तिष्क में सदैव गूंजता रहता है। श्री चरणों में मैं नतमस्तक हूँ। ईश्वर आपको साधना के नये क्षितिज तक पहुँचाये, यही मेरी मंगल कामना है।
प्रेतात्माओं से मुक्ति 0 ठाकुर अचलसिंह एवं भंवरकुवर
यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि महासतीजी श्री उमरावकुंवरजी अर्चनाजी म० सा० का अभिनन्दनग्रंथ प्रकाशित होने जा रहा है, उसमें कई श्रद्धालु भक्तों ने लिखित अनुभव भिजवाये हैं । मुझे मेरे मामा ससुर ठाकुर हरिसिंहजी द्वारा ज्ञात हुया और अपना अनुभव लिखने की अन्तःप्रेरणा मिली । मेरे घर से ठकुरानी श्रीमती भवरकुंवरजी सन् १९८६ में सावन के महीने में जब अपने पीहर बहिन का जापा
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