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द्वितीय खण्ड / १५८
होने लगा । अधिकांश चित्र-संकेतों का अर्थ मैं समझ नहीं पाती, अत: उनका समाधान महासतीजी के मिलने के बाद ही होता । आपकी असीम कृपा एवं प्रेरणा से मैं ध्यान की ओर विशेष प्रभावित होती गई । ध्यान शुरू करने के पूर्व प्रश्न सोचती और उनमें से अनेक के उत्तर मुझे चित्रित होते और सम्बंधित व्यक्तियों मैं बता भी देती, परन्तु अब इस प्रकार की जानकारी देने में मेरी रुचि नहीं है।
करीब सात वर्ष पूर्व मैं अस्वस्थ थी और काफी नाजुक स्थिति होने पर भी मैं प्रातःकाल ध्यान में अवश्य बैठती। एक रात ध्यान के समय गुरुणीजी महाराज के दर्शन होते हैं और वार्तालाप होता है, वे मेरे हाथ में एक केपस्यूल और दवा देते हैं । मैं ध्यान में ही उनसे निवेदन करती हूँ कि मुझे दवा नहीं, आपकी दयादृष्टि ही चाहिए और उसीसे ठीक होना चाहती हूँ । आपने आशीर्वाद की मुद्रा में कहा- ठीक है, यह दवा फेंक दो । बस उस दिन से ग्रापकी कृपा से जीवन भर के लिए दवा छूट गई । इस प्रकार गुरुणीजी म० सा० के अनेक चमत्कार मैंने अनुभव किये हैं। एक बार मेरे घुटने की ढकनी उतर गई, हिलना डुलना बन्द हो गया, चढवे ने २० पट्टे बांधने का बताया, मैंने उन्हें फोस दे कर विदा किया। मैं बहुत परेशान थी दर्द के कारण, महासतीजी उन दिनों में अजमेर विराज रहीं थीं । मेरी प्रार्थना उन्होंने सुनी और अर्द्ध रात्रि के बाद जब मैं ध्यान में बैठी हुई थी तब प्रकाश हुआ, गुरुणीजी म० सा० के दर्शन हुए, घुटने पर झटका दिया और दर्द गायब । प्रातः ठीक तौर से चलने फिरने लगी । यह लोकोक्ति 'भक्त के भगवान' सार्थक हुई । गत वर्ष चैत्र - बैसाख में हम २५ दिन तक पालीतणा ( शत्रुंजय तीर्थ) में ठहरे हुए थे। वहाँ से एक दिन 'गिरनार' यात्रा हेतु प्रस्थान कर सायंकाल वहाँ पहुँचे, मुझे बुखार था, रात को और तेज हो गया, मैंने सोते समय प्रार्थना की कि मेरी यात्रा पूरी होनी चाहिए, उसी रात ध्यान में मुझे मेरे भगवान के दर्शन हुए और कहा 'चढ जाना, सब ठीक होगा' फिर तो मैं सब के साथ उपवास होते हुए गिरनार तीर्थ की पाँच हजार सीढ़ियाँ चढ़ गईं और सायं तक उतर आई । थर्मामीटर से बुखार देखा तो ज्ञात हुआ संकेत १०४ डिग्री पर है । कुल मिलाकर वह यात्रा ग्रानन्दमय और स्मरणीय रही । मैं अपने को धन्य मानती हूँ और गद्गद हो जाती हूँ जब मुझे माँ स्वरूप गुरुणीजी श्रीजी के दर्शन हो जाते हैं, मेरी कामना सफल हो जाती है । इससे ज्यादा मुझे कुछ चाहिए ही नहीं, बस गुरु दर्शन ही मेरी चाह है ।
ध्यान की प्रक्रिया में प्रकाशीय रंग प्रभा, प्रकाशपुञ्ज, ज्योतिशिखा, धूम्र रहित ज्वाला, केशर के छींटे, सिंह, श्वेत हाथी, गुरुजन एवं महापुरुषों के दर्शन आदि दृष्टिगत हुए हैं । इस के विपरीत ध्यान में अनेक बार दुर्घटनायें, बीमारी देहान्त, मारकाट, आग आदि दृश्यों के चित्र संकेत मिले हैं जो बाद में सही देखने में आये हैं । ध्यान तो दैनिक ( दो-तीन बार ) कार्यक्रम है और हर समय कोई न कोई चित्रण तो होता ही है, जिनका उल्लेख करना उपयुक्त नहीं । ध्यान के क्रम में कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव भी घटित हुए हैं ।
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