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'साधवी दीनवत्सलाः/१२९
मुक्त हो गई । सदा-सदा के लिये मैं उस विपत्ति से मुक्त हो गई। यह प्रापश्री की साधना का ही प्रभाव था ।
धर्म का रंग तो मुझ पर जम ही रहा था, उस पर प्रापश्रा का सान्निध्य मिल गया, सोने में सुहागे वाली कहावत चरितार्थ हो गई। मेरे हृदय में संयमव्रत अंगीकार करने की भावना प्रबल वेग से उठने लगी। मैंने अपनी भावना परिवार वालों के सामने व्यक्त की तो एक प्रकार से तुफान ही पा गया। न केवल परिवार वाले वरन् समाज के अनेक प्रमुख श्रावक मेरी दीक्षा के विरुद्ध आवाज उठाने लगे। ये सब दीक्षा के विरुद्ध नहीं थे, उनका विरोध तो बाल-दीक्षा से था। खिलाफत की स्थिति यहाँ तक आ गई कि समाज में विभाजन की स्थिति उत्पन्न हो गई। ऐसी विषम परिस्थिति में पूजनीया गूरुणीजी श्री उमरावकंवरजी म. सा. 'अर्चना' के अमृत वचनों का समाज के लोगों पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ा। जहाँ विरोध मुखर हो रहा था, अब वहाँ एकदम शांति थी और फिर मेरी दीक्षा हर्षोल्लासमय वातावरण में निर्विघ्न सम्पन्न हो गई।
आज आपश्री के सान्निध्य में रहते हुए मुझे तीस वर्ष व्यतीत हो गए हैं। मैंने इस अवधि में आपके साथ रहते हुए अनेक विषम परिस्थितियाँ देखीं किन्तु मैंने पापको हर परिस्थिति में अकम्प, अडिग और निर्भय पाया। अपनी वाणी के प्रभाव से और विनयी स्वभाव से विपरीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लिया।
पूजनीया गुरुणीजी म. सा० की दीक्षा स्वर्णजयन्ती के अवसर पर उनके बहुमानार्थ एक अभिनन्दनग्रन्थ का प्रकाशन होने जा रहा है, यह जानकर हृदय पुलकित है। वीतराग भगवान् से यही कामना है कि आप दीर्घायु हों और आप हमारा व समाज का मार्गदर्शन करते हए जैनधर्म की कीर्तिपताका चहुंयोर फहराती रहें।
साधवो दीनवत्सलाः . आर्या प्रतिभाकुमारी म० सा०
पुण्यादि जब प्रबल होते हैं तब कार्यसिद्धि के लिये सभी प्रतिकूल परिस्थितियां भी अनुकूल हो जाती हैं । ऐसा ही मेरे जीवन में भी घटित हुआ। परम आराध्य गुरुवर्य युवाचार्य श्री भगवान् ने मुझे सही राह बतला दी। एक बार मैंने संयम लेने
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