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सन्त-चरणरज चन्दन के समान होती है.
चरण-रज का रहस्य - महावीर सुराणा, नांदला (अजमेर)
मेरी माताजी श्रीमती झनकारकुंवरबाई की पूजनीया महासतीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. के प्रति अत्यधिक श्रद्धा है। थोड़ी-सी कोई समस्या आई कि वे महासतीजी के सेवा में जा पहुँचती हैं और सहज ही समस्या का समाधान भी महासतीजी के द्वारा हो जाता है, यह हमारे परिवार पर महासतीजी की विशेष कृपा दृष्टि ही कही जा सकती है।
हमारे कुएं का पानी खारा था। यह बात गांव के सभी लोग जानते थे । हम भी चिंतित थे कि इतना श्रम और रुपया लगाने के पश्चात् भी कुएं में पानी खारा निकला, किन्तु प्रकृति के सम्मुख क्या किया जा सकता था !
एक बार माताजी महासतीजी के दर्शनार्थ गयीं । वापस अपने गांव लौटते समय माताजी महासतीजी के पांव के नीचे की रज (मुट्ठीभर रेत) अपने साथ लेती आईं और उसमें से थोड़ी सी रेत कुएं में डाल दी । यह महासतीजी का साधना का फल था कि आपकी चरणरज के कुएं में गिरने से कुएं का पानी मीठा हो गया। हमें तो आश्चर्य था ही, किन्तु जब गांव वालों ने सुना तो उन्होंने कुएं का पानी पी-पी कर आश्चर्य प्रकट किया।
इसी प्रकार वह रेत हमारे खेत में बिखेर दी, जिसमें निरन्तर तीन वर्षों से फसल नहीं हो पा रही थी। रेत बिखेरने के पश्चात् हमारा वह खेत लहलहा उठा। उस खेत में इतनी भरपूर फसल हुई कि मैंने पिछले तीस वर्षों में ऐसी फसल नहीं देखी। यह भी महासतीजी का प्रभाव है।
मेरी माताजी महासतीजी की चरणरज को जल में मिलाकर रखती हैं। गांव के अनेक बीमार दुःखी लोग उसे ले जाते हैं और उसके प्राचमन से उनका रोगनिवारण हो जाता है।
वर्ष १९७९ ई० में महासतीजी का अपनी शिष्याओं के साथ पदार्पण हुआ। जब आपके आगमन का समाचार गांव के लोगों को मिला तो सारा ही गांव आपके दर्शनार्थ उमड़ पड़ा। लोगों ने आपके दर्शन किये और अपने-अपने अनुभव भी सुनाये । यह सब कुछ सुनकर महासतीजी ने यही फरमाया कि श्रद्धा के साथ देव, गुरु का भजन करने और धर्म पर श्रद्धा रखने से सब कुछ अच्छा ही होता है।
हम भी प्रतिदिन महासतीजी के आदेशानुसार धर्मसाधना करते हैं, जिससे हमारे जीवन में परम शांति व्याप्त है ।
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