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महासतीजी का अभिज्ञान / १४३
राम नाम रस पीज मनुवा राम नाम रस पीज तज कुसंग बैठ साधु संग ढिक हरिचरचा सुन लीज ।
नाम की महिमा तरसेनकुमार जैन, जम्मू तवी
दिल्ली के जिस मकान में हम रहते थे उस मकान के मालिक का लड़का बहुत ही उद्दण्ड था । वह मेरी बहिन के प्रति आसक्त था। मेरे द्वारा उसे अनेक बार चेतावनी देने के उपरांत भी उसकी शरारतों में कमी नहीं हुई । मेरी बहिन ने भी उसे कई बार प्रताड़ित किया था फिर भी वह उसके पीछे पड़ा रहता था। उसने हमें कई बार धमकाया भी था । उस लड़के की शरारतों से हम सब परेशान हो चुके थे। इस बीच विदित हुआ कि चांदनी चौक स्थित धर्मशाला में परम पूजनीया महासतीजी श्री उमरावकुंवरजी म० अर्चना' विराजित हैं । मैं सपरिवार महासती जी के दर्शन करने गया और वहीं उन्हें अपनी यह कहानी भी सुनाई । महासतीजी ने पूज्य आचार्य भगवंत श्री जयमलजी का नाम और अपने इष्ट की प्रेरणा देते हुए मंगलपाठ सुनाया। मांगलिक सुनकर हम अपने घर लौट आये । उसी दिन से मेरी बहिन को रोशनदान में से महासतीजी के हाथ की तर्जनी पर चक्र घूमता हुआ निरन्तर तीन दिन तक दिखाई दिया। चौथे दिन वह लड़का किधर गायब हुआ इसका पता भी नहीं चला । हमने शांति की सांस ली। हम सब उस लड़के के कारण परेशान थे। नाम की महिमा इतनी गुणवती होती है, यह अपने जीवन में मैंने पहिली बार अनुभव किया।
महासतीजी का अभिज्ञान
0 इन्द्रजीत
पूजनीया महासतीजी ने दिल्ली से आगरा की अोर विहार किया। मैं भी • महासतीजी की विहार-यात्रा में साथ ही था। मैंने महासतीजी के साथ आगरा तक
पैदल ही जाने का संकल्प किया था। हम अपनी इस यात्रा में अभी मथरा तक ही पहंचे थे, मथरा के एक मकान में प्रवेश किया ही था। न ही मैंने कुछ खाया-पीया था और न ही महासतीजी का आहार-पानी ही पाया था। थकान भी बहुत थी। तभी पूजनीया महासतीजो श्री उमरावकुंवरजी ने तेज आवाज में आदेश दिया कि
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