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द्वितीय खण्ड / १४२
अब मैं पूजनीया महासतीजी द्वारा बताये अनुसार नियमित रूप से श्री नवकार महामंत्र, श्री पार्श्वनाथ और प्राचार्य श्री जयमलजी म. सा. के नाम का जप करता हूँ और यथा समय महासतीजी के दर्शनों का लाभ लेता रहता हूँ। शासन देव से यही विनती है कि ऐसी परम साधिका महासतीजी का वरदहस्त हम सब पर बनाये रखे।
कुंडलिनी शांत हो गई
0 उमेश जैन, इन्दौर
मैं दिगम्बर जैनसमाज का है। श्री बसंतकुमार जोशी के सान्निध्य में मैं गणेशपुरी के स्वामी मुक्तानंदजी के आश्रम में ध्यान-साधना सीखने जाया करता था। मेरे अतिरिक्त और भी कई व्यक्ति वहाँ ध्यान-साधना के लिये जाते थे।
एक बार मेरी कुंडलिनी जागृत हो गई। जिसके परिणामस्वरूप मेरे सम्पूर्ण शरीर में आग की लपटें जैसे उठने लगीं। मुझे शरीर में भंयकर जलन का अनुभव होने लगा। इसके कारण मेरा मानसिक संतुलन बिगड़ गया। मेरी भूख-प्यास गायब हो गई। हाथी हो अथवा कुत्ता, जो भी मेरे सामने प्राता मैं उसका गला पकड़कर झूम जाता । मेरी हालत दिन प्रतिदिन गिरती गई । एक दिन मेरी गर्दन लटक गई । घरवालों ने मेरे जीवन की प्राशा ही छोड़ दो। इसी अवधि में एक दिन घरवालों को किसी ने बताया कि महावीर भवन इमली बाजार में विराजित तेजस्वी महासतीजी उमरावकंवरजी के पास इन्हें ले जाओ। विश्वास है कि वहाँ से इनका स्वास्थ्य ठीक हो जावेगा। मेरी बड़ी बहिन मुझे लेकर उसी समय महासतीजी की सेवा में उपस्थित हुई । महासतीजी दोपहर को ध्यान से उठे ही थे। बहिन ने मुझसे सम्बन्धित सभी बातें महासतीजी को बतलाईं। महासतीजी ने उसी समय मुझे मंगलपाठ सुनाया, उनका मंगलपाठ सुनते हुए ही मैं तीन बार ज़मीन से उछला, उसके बाद एकदम शांत हो गया। उसके पश्चात् महासतीजी जब तक इन्दौर में विराजित रहे, मैं उनका मंगलपाठ सुनने नियमित रूप से जाता रहा।
मैं अब पूर्ण रूप से स्वस्थ एवं प्रसन्न हूँ तथा अपना व्यवसाय करता हूँ। यह सब परमयोग-साधिका महासतीजी की कृपा का ही फल है, अन्यथा मेरी स्थिति क्या होती कुछ कह नहीं सकता। महासतीजी के गुणानुवाद करने के लिये मेरे पास न तो शब्द हैं और न इतनी बुद्धि-सामर्थ्य । मैं अपने हृदय की गहराई से उनके प्रति मंगलकामना करते हुए श्रद्धायुक्त वन्दन करता हूँ।
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