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द्वितीय खण्ड / १३८
चला गया । मुझमें अब एक एक नये विश्वास ने जन्म लिया, स्फूर्ति का संचार हुआ। घर में भी खुशियाँ छाने लगीं । श्रापके मांगलिक श्रवण से मेरा शरीर विषमुक्त हो गया और शरीर के फफोले भी ठीक हो गये ।
समय-समय पर मैं महासतीजी के दर्शनार्थ जाता रहता हूँ । प्रापको प्रेरणा पाकर मैंने कई नियम भी ग्रहण किये हैं । मेरा कार्य केवल सेवा करना और भजनकीर्तन करना है, वह मैं बराबर करता रहता हूँ । आपके नोखा चातुर्मास में भी मैंने सेवा का पूरा लाभ लिया । भगवान् से यही प्रार्थना है कि ऐसे महासतीजी की मुझ जैसे किचन प्राणी पर सदा कृपा बनी रहे और वे दीन-दरिद्रों का दुःख दूर करती रहें ।
महासतीजी की कृपा से लकवा जैसा असाध्य रोग ठीक हो गया.
लकवा ठीक हो गया
→ गोवर्धनलाल दर्जी, खाचरौद
मुझे लकवा हो गया था, मुंह टेढ़ा हो गया था तथा गला अवरुद्ध हो गया था । इस कारण मेरा बोलना भी बन्द हो गया था । सौभाग्य की बात है कि इसी वर्ष हमारे यहाँ जैनसाध्वी श्री उमरावकुंवरजी म० सा० 'अर्चना' का चातुमसि हुआ। महाराजश्री के विषय में मैंने बहुत कुछ सुना भी था । लकवाग्रस्त हुना तो मुझे खाचरौद के श्री मोती काका ने महासतीजी से मांगलिक सुनने की सलाह दी । मैं महासतीजी की सेवा में जा पहुंचा । आपने मेरी स्थिति देखकर मुझे मांगलिक सुनाया । आपके श्रीमुख से निःसृत मंगलवचन सुनकर मैंने अपूर्व सुख का अनुभव किया । मुझे विश्वास होने लगा कि मैं ठीक हो जाऊंगा । मैं नियमित रूप से आपकी सेवा में उपस्थित होकर मांगलिक सुनने लगा । ५-६ दिन में मेरा गला ठीक होने लगा और उसके दो-तीन दिन बाद मैं लकवे से मुक्त हो गया, वीमारी से मुक्त हो गया । श्राज मैं पूजनीया महासतीजी की परम कृपा से एकदम स्वस्थ हूँ, अन्यथा इस बीमारी का उपचार करवाने में मैं असमर्थ था । किन्तु महासतीजी का कहना है कि यह सब शासन देव की कृपा का फल है। ऐसी महान् पर- दुःखकातर महा सतीजी के परम पावन चरणों में मैं कोटि-कोटि वन्दन करता हूँ ।
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