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द्वितीय खण्ड / १३०
के अपने भाव गुरुदेव के सम्मुख प्रकट किये तो गुरुदेव ने फरमाया-हमारे साध्वी'' रत्न, प्रकाण्ड पण्डिता, ध्यानयोग की परम साधिका श्री उमरावकुंवरजी म. सा.
'अर्चना' हैं । तुम उनके पास जानो। उनके दर्शनमात्र से ही तुम्हारा कार्य सिद्ध हो जायेगा । परमसाधक समतायोग की साधना में सदैव रमण करने वाले पंडितरत्न गुरुदेव का वचन कैसे खाली जा सकता था। गुरुदेव के कथनानुसार ही मेरे जीवन में भी घटित हुआ। ____ मैं अपनी छोटी बहन को साथ लेकर पूजनीया गुरुणीजी म. सा० के दर्शनार्थ मन में दृढ़ संकल्प को लेकर पहुँची । मैं जैसे ही आपकी सेवा में पहुँची वैसे ही अप्रत्यक्ष रूप से पूजनीया गुरुणीजी म. सा. ने मेरे अंतर्मन के भावों को स्वतः प्रकट कर दिया। आपने मेरे जीवन में घटित घटना को भी स्पष्ट कर दिया और मेरे मन में जो गत्थियाँ थीं. वे सब भी उन्होंने प्रकट कर दीं। अापके मुखारविंद से यह सब सुनकर मुझे अत्यधिक आश्चर्य हुआ और मेरा हृदय आपके प्रति अगाध श्रद्धा से भर गया। मन गदगद हो उठा । अपनी बातों का समापन करते हए आपने उस समय कहा था-"जो उदय होता है, वह अस्त भी होता है। इसलिये जो बीत गया उसे भूल जाप्रो और आगे सतर्कतापूर्वक कदम बढ़ा देना चाहिये।"
आपके मधुर वचनों से मेरे मन की समस्त अाशंकाएँ कपूर की भांति हवा में उड गई । मैंने संयमपथ पर बढ़ने का दढ संकल्प कर लिया। साथ ही यह भी संकल्प लिया कि दीक्षा प्रापकी पावन निश्रा में ही लेनी है। ____ मेरी दीक्षा में कुछ बाधा अवश्य आई । यह बाधा सकारण थी। बाधा का कारण ससुराल पक्ष का तेरापंथी होना था। किंतु यह बाधा भी कुछ ही दिनों में दूर हो गई। मेरे दीक्षा लेने के संकल्प का लगभग सभी को पता चल गया था। श्री जतनराजजी मेहता ने मेरे श्वसुरजी को केवल इतना कहा--"आप एक बार महासतीजी के दर्शन कर लीजिये। फिर आगे की बातों पर विचार करेंगे।" इस समय महासती जी मेड़ता विराजमान थे। दूसरे दिन मेरे श्वसुरजी महासतीजी के दर्शनार्थ मेड़ता पधारे। उनके मन में बहत अधिक आक्रोश था, किंतु जैसे ही उन्होंने महासतीजी के दर्शन किये/सम्पर्क हुग्रा/महासतीजी की सौम्य मुद्रा देखी, अमृतमय-वाणी सुनी वैसे ही उनका समस्त क्रोध प्रेम में परिवर्तित हो गया। उनका हृदय परिवर्तन हो गया। उन्होंने महासती श्रोजो से विनती की---"महावीर जयंती के अवसर पर आप हमारे नगर बड़ी पादू अवश्य ही पधारने की कृपा करें। यह मेरी विनती है और आपको अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ेगी।"
उस समय महासतीजी ने साधु भाषा में यथोचित उत्तर दे दिया किंतु जब आपने मेड़ता से विहार किया तो चक्कर खाकर भी आप यथासमय बड़ी पादु पधारे । पादु निवासियों के लिये महावीरजयंती मनाने का यह पहला ही अवसर था । खूब धूमधाम से बड़े ही हर्षोल्लासमय वातावरण में महावीरजयंती मनाई गई। इस अवसर पर आसपास के गाँवों के अनेक व्यक्तियों ने भी इस उत्सव में सम्मिलित होकर हर्ष मनाया। इसके पश्चात् आपका विहार हो गया । मैं साथ
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