________________
नागराज का आगमन / १३३
wita viesanna
T
पूजनीया महासतीजी के मंगल वचन सुनने की है । मुझे उनसे मांगलिक सुनवावें । चार-पाँच दिन के पश्चात् पूजनीया महासतीजी म. सा. मेरे यहाँ पधारे। जैसे ही मेरी दृष्टि महासतीजी पर पड़ी मैं एकदम अपने बिस्तर से उठकर खड़ा हो गया । मुझे पता ही नहीं चला कि इन क्षणों में मेरी कमजोरी और दर्द कहाँ गायब हो गया। आपके मंगल वचन सुनने के पश्चात् मैं आपके साथ ही प्रवचनस्थल तक
। परिवार के सभी सदस्य आश्चर्यचकित थे। सभी की आँखों में हर्ष के
र रहे थे। वे लोग भी जो मेरी बीमारी एवं मेरी स्थिति से परिचित थे, आश्चर्य कर रहे थे। अब मैं स्वस्थ था। इस घटना के पश्चात् मेरा अधिकांश समय पूजनीया महासतीजी की सेवा में ही व्यतीत होने लगा और आपके प्रति मेरा हृदय श्रद्धापूरित हो गया।
मेरे साथ घटी इस घटना के कुछ ही दिन बाद एक घटना और घटी। मेरे बड़े बुबा सा० के पेट में एक बड़ी गठान हो गई थी। बुना सा० को उपचार के लिए दिल्ली ले जाना था । मेरा दढ़ विश्वास था कि दिल्ली जाने से पूर्व पृ० महासतीजी म. सा० से मांगलिक सून लिया जावे। मांगलिक सूनने से सभी कार्य सरलता से सम्पन्न हो जावेंगे। परिवार के सभी सदस्य बुना सा० को लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हए। आपको सब कुछ बताकर मांगलिक सुनने की अपनी भावना व्यक्त की। आपने हमारी बात सुनने के पश्चात् फरमाया कि पूज्य श्री जयमलजी म. सा. की माला का जाप करो, सब ठीक होगा। इसके पश्चात् आपने हमें मांगलिक सुनाया। मांगलिक सुनने के पश्चात् हम सब अपने आवास की ओर चल दिये । हम सबको यह जानकर अपार हर्ष और आश्चर्य हुआ कि स्थानक भवन से नीचे उतरते-उतरते बुना सा० की गांठ गायब हो गई है। इससे आपके श्रीचरणों में हमारा विश्वास और श्रद्धा द्विगुणित हो गयी। आज भी मैं समय-समय पर आपके दर्शनलाभ प्राप्त करने के लिए आपकी सेवा में जाता रहता हूँ । इन दो अनुभव के अतिरिक्त और भी सुखद अनुभव मुझे हुए हैं। उन सबको फिर कभी लिपिबद्ध करने का प्रयास करूंगा । अभी इतना ही पर्याप्त है।
एक सर्प जो निसरणी स्तोत्र सुनकर भक्त बन नतमस्तक हो गया.
नागराज का आगमन - जवरीमल घोड़ावत, डेह (नागौर)
प्रात:स्मरणीया, परम पूजनीया महासतीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा० आदि ठाणा उन दिनों डेह (नागौर-राजस्थान) में विराजमान थे। रविवार की बात है । स्थानक में उपस्थित कुछ बहनों ने महासती श्री उमरावकुंवर जी म०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
wwwJainelibrary.org