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द्वितीय खण्ड / १२८
कामा मात्रा के लिखे हुए अक्षर अच्छी तरह से पढ़े भी नहीं जा रहे थे । बच्चे की गम्भीर हालत देखकर म० सा० ने कहा किसी डॉक्टर को दिखलायो । लुहार ने रोते हुए कहा--'इसकी माँ जन्म के डेढ़ माह बाद ही चल बसी, इसे कुछ हो गया तो मेरा घर उजड़ जायेगा, आपका ही सहारा है; इसे ठीक कर दो।' म० सा० ने माँगलिक सुनाया तो वह लड़का ठीक हो गया। जब तक हम गुलाबपुरा रहे तब तक वह नित्य आता और उसकी आँखें खुशी के मारे छलछलाती रहीं।
गुलाबपुरा निवासी श्रीमती सज्जनबाई बोरदिया का मानसिक क्लेश भी महासतीजी की कृपा से ही दूर हया। सज्जनबाई को लगभग छत्तीस वर्ष पहले ढाई तीन महीने का गर्भपात हया था। ३६ वर्षों के बाद उस बालक का जीव इनके शरीर में व्यंतरदेव के रूप में आने लगा। इस कारण वह मानसिक रूप से परेशान रहने लगी। इच्छा न होते हुए भी उन्हें मीरादातार व मेंहदीपुर बालाजी आदि कई स्थानों पर ले जाया गया, पर उन्हें इस बाधा से मुक्ति नहीं मिली । विजयनगर चातुर्मास समाप्त कर गुरुणीजी गुलाबपुरा पधारे। जब म० सा० बाहर जाने के लिए तैयार थे कि श्रीमती सज्जनबाई ६-७ औरतों के साथ सीढ़ियों पर मिल गईं । उस समय श्रीमती सज्जनबाई की तबियत बहुत खराब थी, अत्यधिक व्याकुलता के कारण पैर जमीन से उठ रहे थे और आँखें जैसे बाहर पा रही थीं, उनकी स्थिति अधर में झूलने वाले व्यक्ति की सी थी। पूजनीया गुरुवर्या 'अर्चनाजी' म० सा० ने उन्हें पार्श्वनाथस्तोत्र सुनाया और वह ५-७ मिनट में ही बिल्कुल स्वस्थ हो गई। तब से उन्हें दैविक बाधा आज तक नहीं हुई।
परमोपकारी गुरुणीजी महाराज
। आर्या कंचनकुवर म० सा०
जब मेरी आयु सात वर्ष की थी, उस समय ब्यावर में मैंने अपनी दादीजी श्री रूपकंवरबाई के साथ आपकी सेवा में उपस्थित होकर पहली बार आपके दर्शन किये थे। मेरी दादीजी से मुझे भी धार्मिक संस्कार मिले और बाल्यावस्था से ही मैं धर्म के रंग में रंग गई थी। यह मेरा सौभाग्य ही था कि उस समय मुझे आपके दर्शनों का लाभ मिला । उन दिनों मुझे स्वप्न में विकरालरूप-धारिणी एक स्त्री दिखाई दिया करती थी। मैं इस कारण भयभीत और सहमी-सहमी रहा करती थी। आपके दर्शन करने और मांगलिक सुनने के पश्चात् मुझे फिर कभी भी वह डरावनी सूरत वाली स्त्री दिखाई नहीं दी और शनैः शनैः मैं भी पूर्ण रूप से भय
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