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सन्तसंसर्ग के बिना जीवन उस कागज के फूल की भांति है सुन्दर रंग तो हैं पर सुगंध नहीं.
जिसमें
दिव्यविभूति श्री उमराव कुंवरजी 'अर्चना'
कन्हैयालाल गौड़, उज्जैन
व्यक्तित्व की महिमा और महत्ता प्रकाश के ही समान पावन एवं उज्ज्वल होती है, उसकी महानता सर्वव्यापी होते हुए भी लौकिक चक्षुत्रों से दृष्टिगोचर नहीं होती । वह तो प्रकाश और पवन सदृश सर्वव्यापी होते हुए प्रत्येक स्थान को आलोकित और प्राणमय करती रहती है । उसकी एक ही झलक प्रातःकालीन सूर्य की प्रथम तेजोमय रश्मि की भाँति नवीन सृष्टि और आलोक विकीर्ण कर देती है, ऐसे व्यक्तित्व में जीवन के आदर्श यथार्थ बन जाते हैं ।
अध्यात्मयोगिनी दिव्यविभूति महासती श्री उमरावकुंवरजी अर्चना एक उच्चकोटि की साध्वी वक्ता हैं, भक्ति की धारा में डुबकियाँ लगाने वाली उच्च विचारक, उच्च कोटि की विद्वान् तथा लेखिका हैं । हृदय से बड़ी सरल, सबका हित चाहने वाली, अत्यन्त मृदुभाषी तथा देव-गुरु-धर्म के प्रति अटल श्रद्धा-भक्ति रखने वाली प्रसन्नमुख और आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी साध्वीरत्न हैं । जिनके निकट एक बार आने वाला बार-बार उनसे मिलना चाहता है, बोलना चाहता है, सुनना चाहता है रसमय मधुर वाणी और पाना चाहता है उनका आशीर्वाद ।
मुखाकृति पर अपार तेज, हँसमुख चिन्तनवृत्ति और मौन -साधक । आप वक्तृत्व कला में बड़ी निपुण हैं । आपके प्रवचनों में सरलता एवं सजगता के अतिरिक्त व्यक्ति की मर्यादाओं का समाज और लोकदर्शन के साथ समन्वय भारतीय संस्कृति के विभिन्न धर्मों और दर्शनों की बाह्य विविधता के भीतर जो साम्य और एकरूपता है, जो मानवीय मर्यादायें हैं, निष्पक्ष और निःसंकोच भाव से परिलक्षित होती हैं ।
व्यक्तित्व बहुमुखी है । वे नवनीत से कोमल, फूलों सी सौरभमय हैं । गोस्वामी तुलसीदासजी ने सन्त / साध्वी हृदय की परिभाषा देते हुए लिखा हैसन्त हृदय नवनीत समाना, कहा कविन पर कह्या न जाना । निज दुख द्रवहि सदा नवनीता, पर दुख द्रवहि सन्त पुनीता ॥ श्री 'अर्चनाजी' मानव स्वभाव की मर्मज्ञ एवं तत्वदर्शी साध्वी हैं । उन्होंने संसार को हस्तामलकवत् देखा और सत्य को अपनी विलक्षण शैली में प्रस्तुत किया । इनकी वाणी में जीवन की एक दृष्टि है तथा कल्याण की दिशा देने का अमोघ मन्त्र है । संयम में स्थिर आन्तरिक और बाह्य परिग्रहों से मुक्त छह काया
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