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द्वितीय खण्ड / १००
अर्थात् एकान्त में होती है, उतनी किसी, शहर, नगर या हलचल युक्त स्थानों में नहीं हो सकती । इसके अलावा आपको जितनी खुशी एवं प्रसन्नता साधकों से मिलकर होती है, उतनी नेतागणों से नहीं ।
रणभूमि में जिस प्रकार वीर योद्धा, वीरतापूर्वक लड़ते हुए शत्रुत्रों का सामना करता है, उसी प्रकार आप सदैव कठिनाइयों को प्यार से निमंत्रण देते हैं तथा साहस एवं धैर्य से सामना करते हैं । प्राप प्रत्येक परिस्थिति को उच्च शिखरों वाले पर्वत के समान धीर, वीर, गंभीर, अचल, अटल एवं अडिग रहते हुए शान्त एवं समभाव से सहन करते हैं। आपके जीवन का यह आलोक-सूत्र रहा है--- “Strength is life, weakness is death fear is the root of sin."
जीवन सारा संघर्षो से गुजरा है, और आप प्रारम्भ से अब तक संघर्षों से जूझते रहे हैं । श्री का संपूर्ण जीवन संघर्षों की कहानी है। कॉन्फ्र ेन्स के कार्याध्यक्ष तपस्वी श्रीमान् हस्तीमलजी सा० मुणोत के शब्दों में "केवल सुना है कि शिव ने विषपान कर उसे गले में अटकाये रखा, उसे न तो नीचे उतारा और न ही बाहिर थूका । लेकिन प्रत्यक्ष रूप से महासतीजी ( अर्चनाजी) को देखा है, जिन्होंने संघर्षरूपी विष को बाहर न थूककर अर्थात् किसी के सामने अभिव्यक्त न कर, अपने पेट में उतार लिया और उसे पचा लिया । " इस प्रकार इस युग में जनकल्याण हेतु आप सचमुच “शिवा” बन गईं ।
अन्त में, अपनी लेखनी को विराम देती हुई इस शुभ अवसर पर चरणार्पित होने वाली पुष्पाजंलि में मेरा एक कुसुम जो अन्तःकरण की सम्पूर्ण श्रद्धा सत् कामना द्वारा प्रसूत है, समर्पित करती हुई मंगलकामना करती हूँ कि आप चिरायु एवं पूर्ण स्वस्थ रहकर, दीर्घ काल तक स्नेह की सरस वर्षा करते रहें और मैं आपकी छत्रछाया में, ज्ञान, दर्शन, चारित्र की अभिवृद्धि करती हुई अपने जीवन को अधिकाधिक चमका सकूं ।
इसी शुभ कामना के साथ
करुणामूर्ति ! दया के सागर ! काटो भव के बन्धन, सारा जग हर्षित प्रमुदित हो करता नत अभिनन्दन । दीक्षा - स्वर्णजयन्ती के अवसर पर आनन्दित मन, "हेमप्रभा " कर रही श्रापका भूरि-भूरि अभिवन्दन ॥
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