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युवाचार्यप्रवर श्रीमधुकरमुनिजी म. का योगदान / ८३
और वात्सल्य के साथ अनुशासन में रखना भी । यह उचित और उपयुक्त भी है, जो स्वयं अपने आपको अनुशासन में रखने में समर्थ होते हैं, वे ही औरों को अनुशासन में रख पाने में समर्थ होते हैं । जो धर्म संघ अनुशासित होता है, वह सदा उन्नतिपथ पर अग्रसर होता जाता है । यही कारण है, आपकी अन्तेवासिनियाँ ज्ञान में, साधना में जन-कल्याणमूलक कार्यों में सर्वथा निरत रहती हैं, अग्रसर रहती हैं ।
हमारे देश में पुरुष प्रधान समाज व्यवस्था का प्रारम्भ से ही बड़ा जोर रहा है । इसलिए नारी को जीवन के अनेक क्षेत्रों में विकास की दिशा में आगे बढ़ने से रोका जाता रहा है । इसके पोछे पुरुष की स्वप्राधान्यमूलक भावना, जो स्वार्थ प्रेरित निम्नवृत्ति है, काम करती रही है । यद्यपि श्रमण संस्कृति में नारी को विकास का पर्याप्त अवसर प्रदान किया गया, किन्तु वह पुरुष - प्राधान्य से सर्वथा विमुक्त नहीं रह सकी । उदाहरणार्थ - जैन परम्परा में विशेषतः श्वेताम्बर स्थानकवासी परम्परा में साधु शैक्षिक विकास की दृष्टि से विभिन्न परीक्षाओं में सम्मिलित होते रहे हैं, किन्तु साध्वियों के लिए वैसा करने में कुछ-कुछ निषेध सा रहा है । युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी म० एक क्रान्तिकारी महापुरुष थे । उन्होंने इस निषेध को पोषण नहीं दिया, साध्वियों को परीक्षाओंों में सम्मिलित होने की स्वीकृति प्रदान की । फलतः महासतीजी ने पाथर्डी बोर्ड की जैन सिद्धांताचार्य तक की परीक्षाएँ उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण कीं । वे अपनी अन्तेवासिनियों को भी इस दिशा में सदा प्रेरित करती रहीं । फलतः उनकी शिष्यात्रों ने जैन सिद्धांताचार्य, साहित्यरत्न, एम० ए० प्रादि उच्च परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की। आज भी वे उत्तरोत्तर अध्ययनरत हैं। यह हर्ष का विषय है कि उनकी प्रमुख शिष्या आर्या सुप्रभाजी पी-एच० डी० कर रही हैं, जिनका शोध ग्रन्थ लगभग सम्पन्नता पर है ।
महापुरुषों की प्रेरणा से कितना बड़ा लाभ प्राप्त होता है, व्यक्तित्व के सन्निर्माण में कितना बड़ा सहारा मिलता है, यह सब महासतीजी श्री अर्चनाजी के जीवन से स्पष्ट प्रतीयमान है । श्रीश्रर्चनाजी ने एक उच्च संस्कारनिष्ठ परिवार में जन्म प्राप्त किया। जब वे साधना के क्षेत्र में प्रविष्ट हुई तो उन्हें महान् साधकसाधिकाओं के श्रीचरणों की सन्निधि का सुअवसर प्राप्त हुआ । विद्वत्न युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी जैसे धर्मनायक का तत्त्वावधान, मार्गदर्शन और निर्देशन मिला, इन्हीं का यह परिणाम है कि वे आज प्रर्हत जगत् में अपने व्यक्तित्व की जो आध्यात्मिक छटा विकीर्ण कर रही हैं, साधनामयी, परम योगनिष्ठ सन्नारी के सौमनस्य और सौजन्य के पावन प्रतीक, अधिनेता स्व० युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी को विशेष श्रेय है । यद्यपि वे महापुरुष हमारे बीच आज सदेह विद्यमान नहीं हैं, किन्तु उनकी अमूर्त, अव्यक्त सूक्ष्म प्रेरणा अपनी इस माहात्म्यशीला अन्तेवासिनी को सतत प्राप्त है जिसे वे जीवन की अध्यात्म यात्रा में एक परमोत्कृष्ट सम्बल के रूप में स्वीकार करती हैं ।
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अनुपम है, अद्भुत है । इस महान् व्यक्तित्व-निर्माण में संयम, सारल्य, श्रुतमहोदधि, धर्मशासन के यशस्वी
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