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द्वितीय खण्ड | ५२
का आलीशान भवन बन जायगा । अाजकल मैं देखती हूँ मनुष्य को श्रद्धा कमजोर नजर आ रही है। आप ही बताइये लड़खड़ाने वाला व्यक्ति कभी मंजिल पर पहुँचा? मैंने कहा-नहीं मजबूत पैर वाला ही अपने गन्तव्यस्थल तक पहुँच पाता है ।
आपका कहना बिलकुल ठीक है।' बात का सिलसिला समाप्त हो गया। सतीजी म० ध्यान में बैठ गए । मैं अपने स्थान की ओर रवाना हो गया।
दिनांक २८ नवम्बर १९८६ की बात । मैं सतीजी म. से मिलने गया ! सतीजी म. कहीं दर्शन देने गए थे। मैं बैठ गया साध्वी श्री सुभाजो म० लेखनकार्य में मग्न थी। मैंने कहा क्या समय मिलेगा? सतीजी ने कहा पाप के लिए समय हो समय है फरमाइये क्या प्राज्ञा है ? मैंने कहा सुधाजी म०, प्रश्न तैयार किये हैं । इनका समाधान चाहिए। सुधाजी ने कहा आप स्वयं मिल लीजिये ! मैंने कहा साहस नहीं कैसे मिलूं? छोटे मुंह बड़ी बात होगी। वे (साध्वी श्री अर्चनाजी म०) मनमें क्या सोचेंगी? बरा न मान लें ? सधाजी ने कहा डरने से काम नहीं चलेगा । मुझे विश्वास है गुरुणीजी म. जरूर आपसे बात करेंगी ! सुधाजी इतना कहकर पुनः लेखन कार्य में दत्तचित्त हो गई। सुधाजी के शब्दों ने रामबाण का काम किया । मैं सतीजी म. के समीप पहुँचा। देखता हूँ आप व्यस्त हैं। चारों तरफ पुस्तकें बिखरी पड़ी है। आपको आध्यत्मिक विषय अत्यन्त प्रिय है इसलिए लोग अध्यात्मयोगिनी कहते हैं । काश्मीर तक पैदल भ्रमण किया । धर्म का प्रचार-प्रसार किया इसलिए आपको लोग काश्मीर प्रचारिका कहते हैं । इन्दौर उज्जैन, खाचरौद में ऐतिहासिक शानदार चातुर्मास किये इस कारण से मालवज्योतिजी कहकर लोग पुकारते हैं। प्रागमों के आधार पर आपका प्रवचन बड़ा ही रोचक एवं सरस व सरल होता है इसलिए लोग प्रवचनशिरोमणि भी कहते हैं।
विद्या, विनय, विवेक, जय-तप ध्यान, स्वाध्याय का यहाँ संगम है । पहली मुलाकात में दर्शक इनका भक्त बन जाता है। साधना, संयम व मधुरता की यहाँ त्रिवेणी बहती है । ये सब विशेषता है "मालवज्योति, कश्मीर प्रचारिका, प्रकाण्डपण्डिता, परमविदुषी श्रमणीरत्न, जिनशासन चन्द्रिका, महासतीजी श्री उमराव कुंवरजी म. 'अर्चना' में ।
___ बड़ा ही प्रमोद का विषय है कि दीक्षा स्वर्ण जयंती के सुखद अवसर पर 'अर्चना अभिनन्दन ग्रन्थ' प्रकाशित हो रहा है। जिनके सम्पादन का पूरा कार्य साध्वीरत्न श्री सुप्रभा कुमारीजी म. 'सुधा' ने अपने हाथों में लिया। सुधाजी म० इस कार्य को सफल करने में जुटी हैं । सतीजी म० का जीवन साधनाप्रिय है। जहाँ सतीजी म० विराजमान थे वहां मैं पहुँचा। साध्वीजी म. खड़े हुए । मैने बैठने का इशारा किया सतीजी म. बैठ गए। मैं भी बैठ गया। चेहरे पर सौम्यता है, आँखों में मुस्कान है, बोली में मधुरता है। सारे समाज में सतीजी म० का वर्चस्व है । माधुर्य का झरना बहता हुआ प्रतीत होता है । दर्शनार्थियों का तांता लगा हुआ है । लोग प्रा-जा-रहे हैं । कैसे बातचीत कर ? जरा फुरसत तो मिले ? मैने
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