________________
मेरी आस्था की प्रेरणास्रोत / ६५
और संत्रास स्वतः हो शान्त होकर समाप्त हो जाते हैं। आप हमेशा यही कहते हैं कि धर्म का अर्थ अच्छे गुणों को धारण करना है, किसी लकीर को पीटते रहना नहीं है। जो भी जैनधर्म की अच्छाइयों-जैसे अहिंसा, प्रेम और करुणा को धारण कर लेता है वही सच्चा जैनी है । ऐसा व्यक्ति जो जैन परिवार में जन्म तो लेता है लेकिन जैनधर्म की अच्छाइयों को अंगीकार नहीं करता वह अजैन है । आप जहाँ भी गये हैं यही कहा है-'जैनधर्म एक जीवन-पद्धति है, इसे अपनायो और सुखी जीवन की राह पर चल पड़ो।' यह जीवन-पद्धति मोहम्मद पैगम्बर ने भी बताई, गुरु नानक और ईसा मसीह के ज्ञान का सार भी तो यही था कि सभी से प्रेम करो। किसी का दिल न दुखायो । पैगम्बर मोहम्मद सन् ५७० ई० में अरब के सुविख्यात शहर मक्का में कुरैश के संभ्रांत परिवार में पैदा हुए थे । चालीस वर्ष की आयु में उन पर नाज़िल (देवी ज्ञान) हई । उस समय वह युग हिसा, अन्धविश्वास एवं नशाखोरी के अंधेरे में डबा हना था। ऐसे में उन्होंने ज्ञानालोक प्रदान किया। उन्होंने सत्य पर आचरण किया और लोग उन्हें अमीन अर्थात् सत्यनिष्ठ कहने लगे । सत्य का यही मार्ग भगवान् महावीर स्वामी ने दिखाया। महासती 'अर्चनाजी म० सा० ने सदैव ज्ञान के व्यावहारिक रूप को अंगीकार करने का उपदेश दिया है । इस संदर्भ में मुझे मुनिश्री महेन्द्र कुमार 'कमल' की निम्नलिखित पंक्तियाँ याद आती हैं
"पूजने के लिए नहीं शास्त्र पढ़ने के लिए हैं, पूजने के लिए नहीं सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए हैं, पूजने के लिए नहीं फोटो मढ़ने के लिए है,
पूजने के लिए नहीं जीवन बढ़ने के लिए है।" जब मैं बहुत छोटी थी तब परम श्रद्धया गुरुवर्या के गुणों से प्रभावित हुई और उनके सम्पर्क में आती रही । मैं गत सैंतीस वर्षों से दीक्षित होकर आपके साथ ऐसी हूँ जैसी काया के साथ छाया। मेरी यही कामना है:
आँसुओं के साथ आरम्भ हुई अन्तर व्यथा आपकी छाया में अन्तिम सफर करे जीवन की कथा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
wimminelibrary.org