________________
द्वितीय खण्ड | ७६
(ख) सुधामंजरी महासती सुप्रभाकुमारी 'सुधा' द्वारा सम्पादित, १९८४ में इन्दौर से प्रकाशित 'सुधामञ्जरी' में 'अर्चना' जी के तीस गीत संकलित किए गए हैं। 'चौबीसी', 'गणधर', 'बोधसूत्र' आदि शीर्षकों-वाले ये गीत 'अर्चना' जी की । काव्यप्रतिभा का सुस्पष्ट प्रतिनिधित्व करते हैं।
'सती' गीत (पृ० ४९) में भगवान नेमिनाथ और राजमती की पौराणिक गाथा को वाणी देने का प्रयत्न किया गया है
"अमर कंवर कहे धन्य राजमती अविचल प्रेम निभाया जी। ___ चौपन दिन पहले प्रभु के शिवपुर नगर सिधाया जी॥" _ 'बोधसूत्र' (पृ० १७१) की वे पक्तियाँ हृदय को बहुत दूर तक स्पर्श करती हैं
"मना तेरे जीवन के दिन थोड़े। विमल ज्ञान-उद्यान विचर तूं, सद्गुण फूल क्यों न तोड़े। 'अर्चना' पाना यदि अमर पद साहस के चढ़ घोड़े ॥"
(ग) अप्रकाशित गीत 'भारत मां के लाल' 'कोटि कोटि अभिवंदन' आदि शीर्षकों के लगभग साठ मधुरगीत अभी तक अप्रकाशित हैं।
'भारत मां के लाल' गीत से 'अर्चना' जी के जीवन के एक महत्त्वपूर्ण अंग पर प्रकाश पड़ता है; वह है-उनकी राष्ट्रीय-भावना। इस गीत में गांधीजी का गुणगान करते हुए भारत मां की परतन्त्रता की बेड़ियां टूट जाने पर समस्त संसार में उनके यश के फैलने की बात कही गई है--
"हाँ हाँ अहिंसा वालो झण्डों बापू जग में फहरावे ।
हाँ हाँ भारत की टूटी बेड़ी जद सुयश जग छावे ॥" ४. गद्य काव्य ___ 'अर्चना'जी ने, 'कायापूर पढ़न का पत्र' शीर्षक से एक बहत सन्दर आध्यात्मिक गद्य-काव्य लिखा है । संवत् २०२४ में आठ पृष्ठों की इस लघुपुस्तिका का प्रकाशन हरमाड़ा (अजमेर) राजस्थान से किया गया है।
यह एक बहुत सुन्दर रूपक है। इसमें एक पत्र अक्षयपुर नगर स्थित परम पुरुष परमात्मा के नाम लिखा गया है। पत्र लिखने का प्रयोजन अपने इस अभिप्राय को पहुंचाना है कि पत्र लेखक अपने मनोरथ की सिद्धि के लिए राज्य करने आया था। उसने राज्य करने के लिए सब प्रकार का प्रबन्ध भी कर लिया था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org