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महासती श्री 'अर्चना' जी की काव्य-साधना | ७५
'पुत्र-माँ संवाद' गीत की "मोह मत करो माता नाता सब झूठा है" आदि वैराग्यप्रद भावनाएँ अत्यन्त मार्मिक एवं प्रभावक हैं।
दीक्षार्थिनी को उद्बोधन - इसके चौदह गीतों में 'धन्यवाद,' 'बधाई,' 'दीक्षार्थिनी से, आदि शीर्षकों के अन्तर्गत फूल-सी सुकुमारी, माता-पिता की लाड़ली, वैरागण-दीक्षार्थिनी को 'अर्चना' जी ने बहन के रूप में संबोधन एवं उपदेश दिए हैं"यू कहे 'अर्चना' बहन मान ले कहणो ए।"
-(अर्चनांजलि'-दीक्षार्थिनी से' पृ० ३०) 'दीक्षार्थिनी' का यह पद (पृ० ३७)
"पा बाबा सा की लाड़ली बेरागण बन गई रे।
जिस पन्थ चली चन्दन बाला, उस पथ पर बढ़ गई रे ॥ अत्यन्त हृदयस्पर्शी है।
इसी प्रकार 'माता पुत्रो का संवाद' (पृ० ४०) गीत का यह पद"माता-खेली कदी धम मचाई, आंगणिया में जाई।
एक पलक में प्रेम तोड़कर, केवे नहीं रेवां।" मानव-भावना को उद्वेलित करने वाला है । इन गीतों की सुन्दर समाप्ति शिवपुर-प्राप्ति की कामना से हुई है
"सफल साधना कर संयम की शिवपुर सुख वर ल।
आशीर्वाद 'अर्चना' चाऊ, गुरुवर दे दीजो ॥" अर्चना-उद्गार--इसके सत्रह गीतों में 'स्वागतगान' 'बिदाईगान', 'राजस्थानी गीत' आदि शीर्षकों के अन्तर्गत 'अर्चना' जी की आध्यात्मिक एवं मानवीयभावनाओं का सुन्दर स्फुरण हुआ है।
'सन्देश गुरु महाराज को' (पृ० ५६)-गीत में दूत-काव्य-परम्परा का अनुकरण करते हुए एक शुक से शीघ्र उपवन से उड़कर गुरु का संदेश लेकर वापस आने की बात कही गई है
"सुवा वांगा सू उड़ जाजे रे, म्हारा गुरु सा० की खबर लेय तू,
बेगो आजे रे।" 'बिदाई गान' (पृ० ५७) में गुरु के आध्यात्मिक स्वरूप का सही चित्रण किया गया है
"कंचन कंकर एक बराबर, दोष नहीं लवलेश । शत्र-मित्र पर समता सागर, मन रा मिटाया सारा क्लेश।"
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