________________
है
२ हा
द्वितीय खण्ड/७४ वैभव का त्याग, इन्द्रिय-सुख का दमन, संयमपालन और मुक्ति से नाता जोड़ने की बात कही गई है। ___'अर्चना' जी ने गद्य एवं पद्य दोनों में काव्य-रचना की है। उनके गीतों एवं भजनों की संख्या लगभग दो सौ हैं। इनमें से कुछ प्रकाशित हैं, कुछ . अप्रकाशित हैं और कुछ अनुपलब्ध भी हैं। ३. प्रकाशित एवं अप्रकाशित गीत ___ 'अर्चना' जी के उपलब्ध गीतों में कुछ तो प्रकाशित है और कुछ प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं। प्रकाशित गीत 'अर्चनांजलि' एवं 'सुधामञ्जरी' में संग्रहीत हैं ।
(क) अर्चनांजलि चौसठ-पृष्ठों की यह पुस्तिका सन् १९७२ में, मुनि श्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन, ब्यावर से प्रकाशित हुई थी। इसमें 'अर्चना' जी के सत्तावन गीतों-भजनों का इस प्रकार संकलन है--
१-विविधगायन-४ गीत, २-दीक्षार्थी को उद्बोधन- २२ गीत, ३-दीक्षार्थिनी को उद्बोधन-१४ गीत तथा ४-अर्चना-उद्गार-१७ गीत
विविधगायन-इसके चार गीत मंगलाचरण के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं । इनमें भगवान पार्श्वनाथ एवं महावीर की स्तुति के साथ गुरु गणिवर पूज्य जयलमजी, स्व. स्वामीजी श्री ब्रजलालजी एवं युवाचार्यश्री मधुकर मुनिजी महाराज के गुणों का गायन किया गया है।
चारों गीतों में भक्ति एवं समर्पण की भावना के साथ आत्मकल्याण एवं निर्वाण-प्राप्ति की भावना अभिव्यक्त की गई है
"ओ ! म्हाने आत्मा रो ज्ञान करामो गुरु सा.। ओ! म्हाने शिवपुर की सैर कराओ गुरु सा. ॥"
-(अर्चनांजलि 'गुरुगुणगान' पृ० ४) दीक्षार्थी को उद्बोधन- इसके बाईस गीतों में आत्मोद्धार के लिए प्रयत दीक्षार्थी को 'सम्हल सम्हल पग धरना रे', 'माता की चेतावनी', 'विरक्ति के भाव' आदि शीर्षकों के अन्तर्गत प्राध्यात्मिक उद्बोधन दिया गया है।
'मां की चेतावनी' गीत में साधना-मार्ग को नंगी तलवार पर चलना निरूपित किया गया है- “साधना रो मारग..........नागी तलवारयाँ ऊपर चालणो।"
'दीक्षार्थी को शिक्षा' गीत में नर से नारायण बनने के लिए तत्पर दीक्षार्थी को कहा गया है कि वह पालस्य तजकर गुरु की आज्ञा को जीवन का श्रेष्ठ धन माने ।
Jain Education Mternational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org