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द्वितीय खण्ड /
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है । तासे वाले, नगाड़े वाले और याचक, यह सुनते ही कि कन्या हुई है, चुपचाप सिर झुकाये चले जाते थे । लेकिन आपका जन्म प्राध्यात्मिक जगत की एक ऐतिहासिक घटना थी । आपको जन्म देकर माता श्रीमती अनुपादेवी खुशी से फूली न समाई और कहा भले ही मेरे पुत्री हुई है परन्तु उसके हाथ-पैरों से लगता है कि वह सौ पुत्रों से कम नहीं होगी । धर्मप्रवण माँ ने सप्तमी को जन्म देकर अष्टमी, दसमी और चौदस के तीन उपवास किये । माँ श्रीमती अनुपादेवी की जब भी अपनी अनुपम बेटी को देखती तो हृदय में ममता का सागर उमड़ पड़ता । वह अपनी पुत्री को हृदय से ऐसे लगातीं जैसे दोनों की देह भिन्न होकर भी प्राण एक हों । परन्तु नियति को तो कुछ और ही मंजूर था । जन्म देने के सात दिन बाद भादवा सुदी तीज का दिन था। माँ अनुपा ने उपवास रखा था । उसी दिन उनके जीवन की डोर टूट गयी । श्वासों के मोती बिखर गये और प्राणों का पंछी उड गया | नन्ही सात दिन की बालिका का ममतामय प्रांचल चिता की अग्नि
जल गया, जैसे धूप में थककर आया पथिक वृक्ष की छाया में बैठा ही था कि नियति ने वृक्ष काट दिया । भाग्य ने एक नन्ही शिखा को तेज प्रधियों के बीच में छोड़ दिया । जब आपकी माता का देहान्त हुआ तो पिताश्री मांगीलालजी तातेड़ कार्यवश अहमदाबाद गये हुए थे । उन्हें तार देकर बुलाया गया । यह उनके लिए भी संकट का समय था । जिस जीवनसंगिनी ने सात जन्म तक साथ निभाने का वायदा किया था वह बीच में ही साथ छोड़कर चली गई। उनका कलेजा दो टूक हो गया । उधर उनके पुनर्विवाह के लिए प्रस्ताव आने लगे । उनका मन तो घर से विमुख हो गया था अतः पुनर्विवाह का प्रस्ताव कैसे स्वीकार करते ? वे संतप्त मन लिये बिना किसी को कुछ कहे किसी अज्ञात दिशा की ओर निकल गये । पिता की अनुपस्थिति में आपको बड़े पिताजी तथा बड़े माताजी ने बड़े लाड-प्यार से पाला | बड़े माताजी तो गोदी से नीचे उतारती ही न थीं । दो धाय माताएँ भी आपकी सेवा में रहती थीं ।
आपके जन्म के समय ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी की थी कि आपका जीवन महान् होगा । किशनगढ़ दरवार के राजज्योतिषी श्री जगतनारायणसिंह ने तो यह कहा था कि यह बालिका अपने तपस्वी जीवन से माता-पिता का उद्धार करेगी ।
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महासती उमराव कुंवरजी के बचपन की एक विशेषता यह रही कि तीन वर्ष की अवस्था तक आप कभी रोई नहीं। परिवार वालों का कहना है कि लगभग पौने तीन वर्ष की अवस्था में आप तीसरी मंजिल से नीचे गिरीं । सिर पर गढ्ढ़ा पड़ गया परन्तु फिर भी रोई नहीं । इस प्रकृति के द्वारा आपने जैसे यह संकेत किया था कि, यह संसार रोने वालों के लिए नहीं है । विपरीत परिस्थितियों में भी आँसू न बहाकर आत्मबल का परिचय देना चाहिए। रोना दुर्बलता की निशानी है । तीन वर्ष की अवस्था में अचानक दृष्टिदोष के कारण आप बीमार हो गये । श्रनेक उपचार किये गये, लेकिन आप ठीक न हो सकीं ।
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