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संघर्ष के तूफान में : एक जलती दीप-शिखा / ५७ गया तो अन्य किसी को भेद नही बताया और प्रेम के साथ सामंजस्य स्थापित। करने का पूरा प्रयत्न किया । यह मेरे जीवन का बहुत बड़ा अनुभव है।
(५) प्रियजनों के वियोग से मन-मस्तिष्क का संतुलन बिगड़ने की स्थिति भी प्रायी किन्तु उस समय निरन्तर इष्टदेव का जाप मन में चलता रहा है और अभी भी चलता रहता है।
(६) छोटों का भी कभी अनादर नहीं किया । यहाँ तक की नौकरों के साथ भी भाई-बहिन का व्यवहार किया है।
(७) दूसरों के धर्म का कभी विरोध एवं निन्दा नहीं की । जहाँ से जो अच्छाई मिली उसे ग्रहण करने का प्रयास किया।
(८) मन में कभी बदले की भावना नहीं जगी। (९) प्रेम की अपेक्षा कर्त्तव्य को अधिक महत्त्व दिया ।
(१०) व्यर्थ की बातों में एवं दूसरों की आलोचना में कभी समय बरबाद नहीं किया । इससे मेरे जीवन में बहुत बड़े रहस्य का उद्घाटन हुआ है।
यदि कोई मेरे सामने किसी की बुराई करता है और मैं रुचि से झूठी पालोचना सुनती हूँ तो मेरे हाथों की दसों ही अंगुलियों में तेज दर्द होने लगता
कुल मिलाकर प्रत्येक व्यक्ति को चाहिये कि वह अपने जीवन में शांति और प्रानन्द पाने के लिये ऐसा ही करें ।। १३. समाज में आप क्या-२ सुधार चाहती हैं ?
समाज-सुधार के लिये बहुत सारी बातें हैं, जैसे कि(१) सन्तों के स्थान पर बहिनें सादे वस्त्रों से आयें । (२) सन्तों से खुले मुंह बात न करें। (३) व्यर्थ का अपव्यय नहीं करें। (४) प्रतिदिन प्रार्थना एवं धर्म आराधना करें। (५) अधिक से अधिक स्वाध्याय की प्रवृत्ति बढ़ायें। (६) यथाशक्ति रात्रिभोजन, अभक्ष्य का भी त्याग करें। (७) सन्त भी अपने प्रवचन में विवेकपूर्ण भाषा का प्रयोग करते हुए श्रोतामों
__ की अच्छाइयों को अधिक उजागर करें। (८) सदाचार और संयम का प्रचार प्रसार हो । (९) खान-पान का विवेक रखा जाय । (१०) परस्पर सद्व्यवहार और सात्विक स्नेह का पूर्ण ध्यान रखा जाय । (११) दूसरों की त्रुटियों को उजागर करने की अपेक्षा उनको सुधारने का
प्रयत्न करें।
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