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द्वितीय खण्ड / ४६
धर्मावत की द्वितीय धर्मपत्नी श्रीमती बाबुबाई की पावन कुक्षि से हुआ।
दिनांक ९ दिसम्बर १९७४ मृगसर कृष्णा एकादशी विक्रम संवत् २०३० सोमवार के . शुभ दिन आप सहित चार भागवती दीक्षायें पूज्य शासनसेवी सन्तरत्न स्व० स्वामीजी श्री ब्रजलालजी म. सा. एवं स्व० युवाचार्य श्री पूज्य मिश्रीमलजी म. सा. 'मधुकर', श्री मरुधरकेसरीजी म. सा० आदि ने हजारों जनमेदनी के समक्ष महामंदिर (जोधपुर) के
प्रांगण में प्रदान की। दीक्षाव्रत अंगीकार करने के पश्चात् आपने अध्ययन और वैय्यावृत्य की ओर विशेष ध्यान दिया। इसके परिणामस्वरूप आप एक विदुषी महासती के रूप में शीघ्र ही विख्यात हो गईं।
आपने 'सदियों की एक और सुबह' नामक उपन्यास भी लिखा है। जिसका प्रकाशन मुनिश्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन, ब्यावर से हो चुका है और पाठक वर्ग ने इस उपन्यास का भरपूर स्वागत किया है । इसका द्वितीय संस्करण भी निकल चुका है। इस उपन्यास के पढ़ने से विदित होता है कि आपके अन्दर अद्भुत प्रतिभा छिपी हुई है । अभी अध्ययन, स्वाध्याय एवं शोधकार्य में व्यस्त होने से आप इस प्रकार का लेखन नहीं कर पा रही हैं, किंतु विश्वास है कि आपकी लेखनी का स्पर्श पाकर अनेक कथानक सजीव हो उठेगे।
आपने आगम समिति, ब्यावर के तत्त्वावधान में प्रकाश्य "अावश्यकसूत्र" एवं पत्राकार में 'दशवैकालिकसूत्र' का बड़े ही विद्वत्तापूर्ण ढंग से सम्पादन किया है । इससे आपके आगम ज्ञान एवं तात्त्विक ज्ञान गरिमा का पता चलता है।
"सुधा-मंजरी'', "सुधा-सिन्धु", "सुधा-संचय" एवं "अमृतवेला में" इन चारों पुस्तकों का संकलन-संपादन भी आपने बड़े सुचारु ढंग से किया है।
आपने प्रयाग विद्यापीठ से हिन्दी एवं संस्कृत में “साहित्यरत्न" की परीक्षाएँ तथा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर से एम. ए. (संस्कृत में) विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। धार्मिक अध्ययन में आपने प्रथम श्रेणी से सिद्धान्ताचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की है।
___ इस समय आप "जैन आगमों में भारतीय दर्शन के तत्त्व" (वैदिक एवं बौद्ध चिन्तन धाराओं के विशेष संदर्भ में) विषय पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर से पी-एच. डी. के लिये शोध कार्य कर रही हैं। अपने अध्ययन में व्यस्त रहते हुए भी आपने इस दीक्षा स्वर्णजयन्ती-अभिनन्दन ग्रन्थ का सम्पादन भी पूर्ण लगन एवं निष्ठा के साथ सम्पन्न किया है ।
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