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द्वितीय खण्ड / ३८ जीवित व्यक्तियों का जीवन जर्जरित है, वह भूख और प्यास से व्याकुल हैं। ऐसे में मृत्युभोज करना मृतात्मा को शांति प्रदान करना नहीं अपितु और अधिक कष्ट पहुँचाना है ।
दहेज की ज्वाला में जलती हुई सुकुमारियों को देखकर आपका मन ग्राहत होता है । ग्राप सदैव युवापीढ़ी को इस सामाजिक बुराई के विरुद्ध जागरूक एवं संगठित होने को प्रेरित करते हैं । आपका मानना है कि यह कुरीति तभी समाप्त होगी जब युवापीढ़ी इसके विरुद्ध दृढ़ संकल्प करे । बाल-विवाह, सती-प्रथा प्रादि के विरुद्ध भी आपने सदैव प्रावाज उठाई है
"बाढ़ आने पर नदी के किनारे टूट जाते हैं, मुसीबत में अच्छे अच्छों के छक्के छूट जाते हैं ॥ दहेज की बात में जरा मतभेद होने पर, बीन्द और बीन्दनी कुवारे भी उठ जाते हैं ।"
परमार्थ कार्य के लिए आप सदैव तत्पर रहती हैं । शिक्षण संस्थाओं, अनाथालयों, ध्यान योग केन्द्रों, पुस्तकालयों आदि के लिए आपका पथप्रदर्शन सराहनीय है । समय-समय पर आपकी प्रेरणा से विविध नेत्रशिविर भी लगते हैं । आपका कथन है कि किसी बीमार की सेवा करना, वृद्ध को श्राश्रय देना, भूखे को रोटी खिलाना बहुत बड़ा धर्म है । प्रापके जीवन का मुख्य उद्देश्य जाति-धर्म, सम्प्रदाय और रंगभेद की विषमताओं से जीवात्माओं को मुक्ति दिलाना है । आपने सदा दलित, शोषित वर्ग का पक्ष लिया है । आपका कथन है कि मनुष्य, समाज के विभाजन की भावना त्यागकर अपने रूप को पहचाने और अन्तःकरण में छिपी जनकल्याण प्रवृत्तियों को प्रतिष्ठित करें ।
आपका कथन है कि यदि मनुष्य को व्यावहारिक ज्ञान दिया जाय तो उसकी आत्मा की बंद खिड़कियाँ खुल जाती हैं और प्रेम, सत्य तथा दया की रोशनी अन्दर आती है ।
आपके सान्निध्य में जो भी आता है, आपके स्वभाव से तुरन्त प्रभावित हो जाता है । आपका स्वभाव अत्यधिक सौम्य है । आप आभायुक्त मुस्कान से शरण में आनेवाले क्लान्त प्राणियों को यही संदेश देती हैं
" हँसे खिले जो सर्वदा वही फूल है, ठोकर खाकर न बदले वही धूल है ॥ उदास रहने से कभी गम दूर नहीं होते, उदास रहना जीवन की बड़ी भूल है ।। "
यह जीवन वरदान है । इसे उदास रहकर नहीं, मुस्कराते हुए, अध्यात्म को अपनाते हुए जीयो । जो लोग जीवन की किसी एक असफलता से दुःखी होकर हिम्मत हार जाते हैं, रोने लगते हैं, उन्हें आपने यही कहा है
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