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द्वितीय खण्ड / ३२
साढ़े ग्यारह वर्ष की अवस्था में पाप परिणयसूत्र में आबद्ध कर दी गई। आपका ससुराल अजमेर के पास दोराई गांव में था। आपके ससुर श्री सुवालालजी हिंगड गांव के सर्वाधिक प्रतिठिष्त व्यक्ति थे। उन्होंने ग्यारह लाख रुपये व्यय करके पाँच गांव बसाये। आज भी दोराई 'हिंगड़ों' की कहलाती है। आपके पाठ देवर-जेठ और एक ननद थी। पीहर और ससुराल दोनों जगह जीवन सुखमय था। दो वर्ष हँसी खुशी में ऐसे बीत गये जैसे दो दिन । परन्तु कर्म के सामने हम कितने विवश होते हैं-विधि की विडम्बना ! कि मृत्यु के एक ही झोंके ने आपकी मांग का सिंदूर पौंछ दिया।
संयोगवश बालब्रह्मचारिणी महासती श्री सरदारकुंवरजी म. सा. के आपको दर्शन प्राप्त हुए और लगा जैसे पतिवियोग का अंधेरा क्रमशः दूर होता जा रहा है और उसके स्थान पर वैराग्य के उजाले की किरणें फैल रही हैं। आपको लगा"प्रच्छन्न रोग है प्रकट भोग में' और मन का सन्ताप दूर होने लगा । आपने त्यागपथ पर चलने का निश्चय कर लिया। आपके निश्चय को अपने पिताजी द्वारा भी अनुपम बल मिला। वि. स. १९९४ अगहन बदी ग्यारस रविवार को नोखा ग्राम में पूज्य प्रवर्तक श्रद्धेय श्री हजारीमलजी म. सा. के कर-कमलों द्वारा मरुधरा की प्रख्यात प्रागमज्ञ यशस्वी महासती श्री पूज्य सरदारकुंवरजी म. सा. की नेश्राय में आपने दीक्षा ली। दीक्षा से एक घण्टे पूर्व आपको पिताजी का आशीर्वाद मिला "तेरे कदम साधना के शिखर की ओर बढ़ते रहें।" तबसे आपके कदम अनवरत साधना के शिखर की ओर बढ़ रहे हैं। आपके संकल्प के समक्ष बाधाओं ने घुटने टेक दिये
तुम मेरी श्रद्धा मत आजमाओ, मेरे विश्वासों की हार न होगी। मुझे बतलाओ मंजिल से राही कब-कब हारा, बढ़ने वालों ने क्या पीछे की ओर कभी निहारा? उठे कदम जब मानव के तो, झुक गया हिमालय भी, मोड़ ले गयी युग-युग से उलटी बहती धारा भी।
तम अपने ध्वंसों को समझाओ......." मूचालों ने धरा हिला दी, मानव उर न हिला, दुभिक्षों, अंगारों में भी, मानव सुमन खिला। कितनी बार प्रलय ने जिसके साहस को तोला, उसको ऊंचा उठा सकी है, अब तक कौन तुला ।
__ "ओ पतझड़ ! वापिस जाओ,
__मेरे मधुमासों की हार न होगी॥........" आपके रास्ते में कभी तूफान आया और कभी आँधी, कभी तीन-तीन, चारचार दिन तक आहार पानी भी नहीं मिला। कभी मौसम ने तेवर दिखाए तो कभी मनुष्य ने... लेकिन वह कदम और होंगे जो पथ की बाधाओं से हार गये । आपने तो यही किया सार्थक है
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