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द्वितीय खण्ड २६ चमत्कार बन जाती है। यदि आपके सम्पूर्ण तितिक्षामय जीवन को देखा जाये और इस प्रकार की घटनाओं का संकलन कर लिपिबद्ध किया जाय तो संस्मरणों की एक अच्छी पुस्तक तैयार हो सकती है। संस्मरणों में साधकजीवन का प्रतिबिम्ब होता है । उसमें साधक की महत्ता प्रकट होती है और साधक के अनुयायीवर्ग को नित नवीन प्रेरणा मिलती है। इसलिये आपके अनुयायीवर्ग से यही अपेक्षा है कि वे उस दिशा में प्रयास कर आपसे उस प्रकार के संस्मरण प्राप्त कर उनका प्रकाशन विशेषरूप से करने की व्यवस्था करें।
महासती श्रीउमराव कुवंरजी म. सा. 'अर्चना' व्यक्ति नहीं एक संस्था हैं। मानवसेवा आपका स्वभाव है। उस कार्य को गति प्रदान करने के लिये आपने अनेक संस्थाओं की स्थापना भी की है। उन संस्थाओं के माध्यम से आपके द्वारा दीन-दुखियों और जरूरतमन्दों की अच्छी सेवा की जा रही है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आप कितनी पर-दुःखकातर हैं।
आप एक श्रेष्ठ संगठक भी हैं । आप अनुशासनप्रिय हैं । अवज्ञा और प्राचार में शिथिलता आपको असह्य है। किन्तु कोमलहृदय होने के कारण आप अपनी शिष्याओं को कष्टमय भी नहीं देख सकती हैं। जब कभी भी ऐसा कोई प्रसंग देखने में आया आप विह्वल हो उठती हैं। जब तक अपनी शिष्या स्वस्थ नहीं हो जाती तब तक आप बेचैन रहती हैं। और उनकी सेवाशुश्रूषा में किसी प्रकार की कमी नहीं आने देती हैं । इसके अतिरिक्त आप अपनी शिष्याओं के अध्ययनअध्यापन पर भी विशेषरूप से ध्यान देती हैं। उसीका यह परिणाम है कि आपकी सभी शिष्याएं विदुषी हैं।
आपकी दीक्षा के पचास वर्ष पूर्ण होने पर आपके सम्मान में एक अभिनन्दनग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है । यह प्रयास स्तुत्य है । मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि यह अभिनन्दन ग्रन्थ अपने आप में एक उच्चकोटि का ग्रन्थ हो और आपके समग्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर तो प्रकाश डाले ही, साथ ही आपके साधनामयजीवन के विशिष्ट संस्मरणों का विशेषरूप से प्रकाशन करे । यदि ग्रन्थ में आपकी रुचि के विषयों से सम्बन्धित सामग्री के प्रकाशन को प्राथमिकता दी जावेगी तो निश्चय ही यह ग्रन्थ-समर्पण सार्थक होगा।
अन्त में यही शुभकामना है कि आप सदैव स्वस्थ रहते हुए अपनी वाणी से अमृत-वर्षा करती रहें और समाज का मार्गदर्शन करती रहें। ___ एक बार पुनः ध्यानयोग की महान आराधिका के यशस्वी जीवन के प्रति मैं अपनी हार्दिक मंगलकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।
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