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जयपरम्परा के पांच पुष्प / ९
बचपन से हो आपमें सर्वतोमुखी प्रतिभा थी । अतः ग्रापका अध्ययन भी उच्चतम रहा । आपने संस्कृत, प्राकृत, ग्रागम, चूर्णी, टीका, भाष्य, काव्य, छन्द:शास्त्र व ज्योतिष आदि का गम्भीर अध्ययन किया । अपने समय में वे आगमों के तलस्पर्शी विचक्षण विद्वान् माने जाते थे । वे उग्रक्रियावादी नहीं थे तो कोरे ज्ञानवादी भी नहीं थे । उनमें ज्ञान-क्रिया का सुन्दरतम समन्वय था ।
स्वामी श्री जोरावरमलजी म. का विचरण राजस्थान में ही हुआ था, फिर भी उनका वर्चस्व जैन व जैनेतर समाज में सर्वत्र छाया हुआ था । स्वामीजी सही बात को ही पकड़ते थे, उनकी पकड़ बहुत सुदृढ़ होती थी । आगम के आधार पर तर्क की कसौटी पर कसकर वे विरोधियों को ऐसा करारा जवाब देते थे कि विरोधी व्यक्ति स्वयंमेव उपशांत हो जाते ।
स्वामीजी सुधारवादी भी थे । अनेक स्थानों पर उन्होंने परम्परा से प्रचलित अनेक कुप्रथाओं का निवारण किया । बारात में रात्रि भोजन, ढोल पर कुलीन स्त्रियों का नाचना, विवाह आदि अवसरों पर औरतों का गन्दे गीत गाना आदि कुप्रथाएँ स्वामीजी को बहुत अखरती थीं । अछूत जाति के प्रति भी स्वामीजी की बड़ी हमदर्दी थी । हरिजनों को उच्छिष्ट भोजन देने का भी वे सख्त विरोध करते थे । हरिजनों के कल्याण के लिए स्वामीजी ने कुचेरा- डेह - नागौर आदि क्षेत्रों में अथक प्रयास किए थे।
साधु समाज में क्रिया की ढिलाई स्वामी जी को बिलकुल नहीं सुहाती थी । चाहे अपनी सम्प्रदाय के ही साधु क्यों न हों, जिनमें वे क्रिया की ढिलाई देखते तो उनसे वे अपना सम्पर्क कभी नहीं रखते थे । इस बात को लेकर स्वामी जी साधुसमाज में कुछ कठोर प्रकृतिवाले माने जाते थे ।
स्वामीजी में एक खास विशेषता यह थी कि यदि प्रवृत्तियों को देखकर श्रावकसमाज में उन साधुयों के प्रति बन जाता तो वे समाज में पुनः उनकी जाजम जमाने में भी कभी नहीं चूकते थे ।
साधुसमाज की गलत श्रद्धा का वातावरण
सम्प्रदायों में पारस्परिक प्रेम, सद्भाव एवं समन्वय के लिए किये गए प्रयत्नों में आपका नाम सदा गौरव के साथ लिया जायेगा । वि. सं. १९८६ ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्थी के दिन भुवाल में आपका स्वर्गवास हो गया ।
स्वामीजी के तीन शिष्य हुए-१ स्वामी श्री हजारीमलजी म. सा. २. उपप्रवर्तक स्वामी श्री ब्रजलालजी म एवं ३ युवाचार्य पंडितरत्न श्री मिश्रीमलजी म. सा. 'मधुकर' मुनिजी ।
२. मुनिवर श्री हजारीमलजी महाराज
स्वामी श्री हजारीमलजी म. वास्तव में एक सतयुगी संत थे । उनका अंत:करण शिशु के समान सरल तरल था, तो मन ओलिया फकीर जैसा वासना, कषाय आदि से विरक्त ।
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