________________ (29) वाष्कलमन्त्रोपनिषद् में सर्वत्र आत्म स्थिति का कथन करते हुए आत्मा की व्यापकता का स्वरूप-निर्देश के सन्दर्भ में परमेष्ठी कह कर भी सम्बोधित किया यहाँ द्रष्टव्य है कि नमस्कार-मंत्र में पंच परमेष्ठी पद हैं, जो कि देव और गुरु तत्त्व में समाहित है। उपनिषदों में देव तत्त्व के रूप में ब्रह्मा-विष्णु और प्रजापति को तो स्थान मिला ही है साथ ही आत्म-व्यापकता की स्थिति में भी परमेष्ठी संज्ञा दी गई है। नमस्कार मंत्र में-आत्म-परमात्म दोनों पदों में आत्मा के उत्कर्ष को परमस्थिति की प्राप्ति के साथ कथन किया है। आत्मा की व्यापकता तो समान रूप से लक्षित होती ही है। इस प्रकार हमें विदित होता है कि परमेष्ठी पद से उच्चतम स्थान-निवासी संज्ञा जैन तथा उपनिषदों में समान रूप से प्राप्त है। यद्यपि देवत्व के स्वरूप में भिन्नता है तथापि देव स्वरूप से परमेष्ठी-पद का कथन तो किया ही गया है। पुराण आदि साहित्य में परमेष्ठी. पौराणिक साहित्य में विष्णु अर्थ में, महादेव अर्थ में 'महाभारत में उल्लेख किया गया है। ब्रह्म पुराण' में शालग्राम विशेष अर्थ में, परमेष्ठी पद प्रयुक्त है।' 'पुराण संग्रह' में भी इसी के समान प्रयोग किया है। वैश्वानर संहिता' में भी इसकी पुष्टि की गई है। इसके अतिरिक्त भागवत पुराण' में ब्रह्मा अर्थ में एवं विष्णु अर्थ में प्रयोग किया है। शतपथ ब्राह्मण में ब्रह्मा अर्थ में इसका उल्लेख किया है। अमर कोश में ब्रह्मा तथा मनुस्मृति में विष्णु अर्थ प्रयुक्त है। उपरोक्त सभी सन्दर्भो में परमेष्ठी पद देव अर्थ को लिए हुए है। पितामह ब्रह्मा, प्रजापति, विष्णु, महादेव, शालग्रामविशेष आदि अर्थों में परमेष्ठी शब्द का 1. बाष्कलमन्त्रोपनिषद् 25 2. महाभारत 13. 149. 58. 3. वही. 3. 37. 58 4. ब्रह्म पुराण-परमेष्ठी च शुक्लाभ पद्मचक्र समन्वितः। शब्दकल्पद्रुम, पृ.५२. 5. पुराण संग्रह-वही समानरूप से प्रथम पंक्ति श. क. 552. 6. वैश्वानर संहिता-इसी के समान प्रथम पंक्ति- श. क. 52. 7. भागवत पुराण 2. 1. 30, 2. 22., 3. 6, 2. 3. 6. 8. वही 2. 1. 30, 2. 2. 22. 9. शतपथ ब्राह्मण 11. 1.6. १०.अमरकोश 1. 1. 16. 11. मनु स्मृति 1.80.