________________ (27) . व्यक्ति, समष्टि और परमेष्ठी का भेद देखना चाहिए। व्यष्टि एक व्यक्ति है। समष्टि व्यक्ति समूह का नाम है और परमेष्ठी स्थिर चर विश्व सम्पूर्णनाम है। प्रस्तुत काण्ड में मनुष्य विश्व व्यापक परमेष्ठी को किस प्रकार जान सकता है ? इसका उल्लेख करते हुए ब्रह्म साक्षात्कार की साधना का कथन किया गया है। ग्यारहवें काण्ड में भी परमेष्ठी से अभिप्राय परमेश्वर परमात्मा का ही है। बारहवें काण्ड में प्रजापति को परमेष्ठी कहकर सातवलेकराचार्य परमेष्ठी की व्युत्पत्ति करते हैं-'परमे-स्थि''परम उच्च स्थान में स्थित'। परमेष्ठी पद की प्राप्ति के लिए दान देना, सत्य और तप आदि धर्म-कर्म जो किये जाते हैं, मुख्यतः परमेष्ठी पद की प्राप्ति के लिए किये जाते हैं, ऐसा उल्लेख किया गया है। तेरहवें काण्ड में परमेष्ठी से अभिप्राय परमात्मा का एवं वाचस्पति का है तो पंचदश काण्ड में परमेष्ठी को पुनः स्वतन्त्र देवता कहा गया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि 'अथर्ववेद में परमात्मा, परमेश्वर, ब्रह्म-ज्ञान, प्रजापति, ब्रह्मा' वाचस्पति अर्थों में परमेष्ठी पद प्रयुक्त हुआ है। सायणाचार्य की अपेक्षा सातवलेकराचार्य ने परमेष्ठी का हार्द गूढ़तम-सुन्दर रीति से खोला है। सामवेद में मात्र एक ही स्थल है, जहाँ पर परमेष्ठी पद का उल्लेख किया है। यहाँ परमेष्ठी प्रजापति अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है। ___ अथर्ववेद, सामवेद के अतिरिक्त यजुर्वेद में परमेष्ठी-पद का उल्लेख अनेकशः किया गया है। इसमें अधिकांश रूप से परमेष्ठी पद प्रजापति के लिए प्रयुक्त किया है। प्रजापति के अतिरिक्त ब्रह्म अर्थ भी परमेष्ठी का किया गया है। ___ अथर्ववेद में ब्रह्मा, प्रजापति, परमात्मा-परमेश्वर, अग्नि, धर्मोपदेशक, ज्ञानी आदि अर्थों में परमेष्ठी पद ग्राह्य है, जबकि यजुर्वेद तथा सामवेद में 'प्रजापति' अर्थ इष्ट है। अर्थ जो भी हो, सभी में परम-पद-प्राप्त अर्थात् जो परम पद में स्थित है, पूजनीय है, वंदनीय है, आदरणीय है, आचरणीय है, उसी पर परमेष्ठी पद की श्रद्धा केन्द्रित हुई है। वेदों के पश्चात हम उपनिषद्-साहित्य में परमेष्ठी पद का निरूपण करेंगे। 1. अथर्व. 11.7.7.. 2. अथर्व. 12. 3. 45. 3. अथर्व. सातवलेकर. भा. 12. 3. 45. 4. 1. अथर्व. 13. 1. २,अथर्व. 13. 3. 5. अथर्व. 13. 1. 17-19. 5. अथर्व. 1. 15.7. 2. 2. अथर्व. 15.6.25-26. 6. यजु. तै. स. 1.6.9.2, शुक्ल यजु 5. 54.14.9, 14.31, 15.58