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प्रथम वक्षस्कार (न्यायसूत्र क्र. १ )
- वैयाकरण आदि, जो सिद्धान्त व शास्त्रों से परिचित हैं और प्रामाणिक अर्थात् नैयायिक आदिमें प्रसिद्ध जो न्याय है, उसके लिए प्रयत्न किया जाता है ।
वस्तुतः 'न्याय' शब्द दृष्टान्त अर्थ में प्रचलित या रूढ़ है । उदा. सूचीकटाहन्याय, काकाक्षिगोलकन्याय, डमरुकमणिन्याय, घण्टालालान्याय, देहलीदीपकन्याय इत्यादि । किन्तु यहाँ 'नीयते सन्दिग्धोऽर्थो निर्णयमेभिः'- जिसके द्वारा सन्दिग्ध / शंकास्पद अर्थ को किसी निर्णय या निश्चित अर्थ के प्रति लाया जाता है, उसे 'न्याय' कहते हैं । यही 'न्याय' शब्द 'न्यायावायाध्यायोद्यावसंहारावहाराधारदारजारम्' ५ / ३ / १३४ सूत्र द्वारा घञ् प्रत्ययान्त निपातित है ।
'न्याय' अर्थात् अपने इष्ट साध्य को सिद्ध करनेवाले गुण से युक्त युक्तियाँ, अर्थ का अनुसरण करनेवाली इसी व्युत्पत्ति से सन्दिग्ध अर्थ का निर्णय' ही सब न्यायों का सर्वसामान्य प्रयोजन बताया है ।
॥ १ ॥ स्वं रूपं शब्दस्याशब्दसंज्ञा ॥
'शब्द' के अपने स्वरूप का ही सर्वत्र ग्रहण होता है, यदि वह शब्द किसी की संज्ञा के स्वरूप में न हो ।
व्याकरण के सूत्रों में सर्वत्र शब्द के अपने स्वरूप का ही ग्रहण करना चाहिए, यदि उसी शब्द से किसी शब्दसमूह या अन्य की संज्ञा न की गई हो । यदि इसी शब्द से किसी शब्दसमूह या अन्य की संज्ञा की गई हो तो उसी शब्द से अपने स्वरूप का अनादर करके जितने शब्दसमूह की या अन्य की संज्ञा की गई हो उन सबका ग्रहण होता है ।
'सम्' उपसर्ग से युक्त 'ज्ञा' धातु को 'उपसर्गादात: ' ५ / ३ / ११० सूत्र से भाव में 'अ प्रत्यय होने पर 'संज्ञा' शब्द बनता है ।
'गौणमुख्ययोर्मुख्ये कार्यसम्प्रत्ययः ' ॥२२॥ आदि न्यायों का यही न्याय अपवाद है । यह न्याय आगे बताया जायेगा ।
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यथा 'समः ख्यः' ५/१/७७ यहाँ 'ख्या' धातु के दो प्रकार हैं- एक 'ख्यांक्', अदादि गण का और दूसरा 'चक्षु' धातु के आदेश के रूप में [ चक्षो वाचि क्शांग् ख्यांग् ४/४/४] भी 'ख्या' धातु है । इस न्यायसूत्र से यहाँ दोनों प्रकार के 'ख्या' धातु का ग्रहण होता है क्योंकि 'ख्या' किसी धातुसमूह की संज्ञा नहीं है । अतः 'गाः संख्याति, गाः सञ्चष्टे, ' दोनों प्रकार के विग्रह द्वारा गोसङ्ख्य आदि शब्दो में 'ड' प्रत्यय की सिद्धि होती है ।
यदि यह न्याय न होता तो 'गौणमुख्ययोर्मुख्ये कार्यसम्प्रत्ययः ' ॥२२॥ न्याय से केवल स्वाभाविक 'ख्या' धातु से ही 'ड' प्रत्यय होता, किन्तु 'चक्षू' धातु के आदेश होने से जिसने धातुत्व प्राप्त किया है ऐसे 'ख्या' धातु से 'ड' प्रत्यय नहीं होता अथवा 'कृत्रिमाकृत्रिमयोः कृत्रिमे ॥२३॥ न्याय से केवल कृत्रिम 'ख्या' धातु, - जो 'चक्षू' धातु का आदेश है, - को ही 'ड' प्रत्यय होता किन्तु
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