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॥ ॐ श्रीशङ्खेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ॥ ॥ नमो नमः श्रीगुरुनेमिसूरये ॥ नमः ॥
॥ ॐ
॥ एँ नमः ॥
॥ न्यायसंग्रह ॥
अथ
कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्यविरचितश्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनगतपण्डित श्रीहेमहंसगणिसङ्गृहीत'न्यायसङ्ग्रह' नाम्नः न्यायसूत्राणां स्वोपज्ञन्यायार्थमञ्जूषानामबृहद्वृत्तेश्च स्वोपज्ञन्यासस्य च मुनि नन्दिघोषविजयकृत सविवरणं हिन्दीभाषानुवादः
तीनों लोक के आह्लाद / आनंद के कारण स्वरूप शोभा से युक्त, चन्द्र जैसी सौम्य आकृतियुक्त, विश्व में सबसे महान और सबके रक्षक श्रीसिद्धचक्र भगवंत को नमस्कार हो ।
न्याय (रीति) मार्ग पर चलनेवाले राम आदि राजाओं का यश ( ख्याति) आज दिन तक सब दिशाओं में फैला हुआ है, और न्यायरीति से प्राप्त लक्ष्मी इहलोक और परलोक में भी अनन्य सुख देती है और चन्द्र जैसा ( स्वच्छ / निर्मल) यही जिनशासन भी न्याय से ही जयवंत होता है / विजय प्राप्त करता है । किन्तु शठ / धूर्त लोगों की वाणी निश्चय से विजय प्राप्त करती नहीं है, अतः पंडितपुरुषों में इन्द्र समान ऐसे आप सब शुभ स्थानदायक / शुभ फलदायक न्यायवृत्ति का आदर करें और इसका आचरण भी करें।
यहाँ सुगृहीतनामधेय अर्थात् जिसका नाम स्मरण अच्छी तरह करने योग्य है ऐसे श्रीहेमचन्द्राचार्यजी ने स्वयं निर्माण किये हुए संस्कृत शब्दानुशासन / व्याकरण की बृहद्वृत्ति के बाद सत्तावन (५७) न्यायों का संग्रह किया है । उसके अनित्यत्व की उपेक्षा कर, कई महापुरुषों ने, उसकी व्याख्या, उदाहरण / दृष्टान्त और ज्ञापकों से युक्त छोटी-सी वृत्ति / टीका बनायी है ।
किन्तु अभी यहाँ आचार्य श्री द्वारा संगृहीत सत्तावन न्याय और मेरे द्वारा संगृहीत चौरासी ( ८४ ) न्यायों की सूत्र और उद्देश के साथ व्याख्या, प्रयोजन, दृष्टान्त, ज्ञापक और यथायोग्य अनित्यता व अनित्यता के ज्ञापकों को बताने के लिए 'न्यायसङ्ग्रह' नामक ग्रन्थ के न्यायसूत्रों की 'न्यायार्थमञ्जूषा' नामक बृहद्वृत्ति मैं लिख रहा हूँ ।
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