Book Title: Nyayasangrah
Author(s): Hemhans Gani, Nandighoshvijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 417
________________ ३६४ न्यायसंग्रह (हिन्दी विवरण) जबकि अन्य कुछेक के मतानुसार 'कम्' धातु सर्वक्रियार्थक है, अतः 'कगति' का अर्थवह जाता है, वह खाता है, वह सोता है' इत्यादि होता है । यह धातु 'एदित्' होने से 'न विजागशसक्षण म्येदितः' ४/३/४९ से वृद्धि का निषेध होता है, अतः 'व्यञ्जनादेोपान्त्यस्यातः' ४/३/४७ से प्राप्त वृद्धि नहीं होगी और अद्यतनी में 'अकगीत्' रूप होगा ॥ १८ ॥ घ अन्तवाला 'अर्घ मूल्ये' धातु है, वह 'मूल्य करना' अर्थ में है । 'महार्घः' अर्थात् महामूल्यवान् । 'कलां नार्घन्ति षोडशीम्'२ (वे सोलहवीं कला का मूल्य नहीं करते हैं। ) ॥१९॥ च अन्तवाला 'मर्चण् शब्दे' धातु शब्द/आवाज़ करना अर्थ में है। मर्चयति । णिच्' अनित्य होने से 'णिच्' के अभाव में उणादि के 'भीण शलि'-( उणा-२१) सूत्र से 'क' प्रत्यय होने पर 'चजः कगम्' २/१/८६ से 'च' का क होने से मर्कः शब्द होगा, उसका अर्थ देवदारु २ होता है ॥२०॥ ज अन्तवाले तीन धातु हैं । १. 'मञ् सौन्दर्ये च' । 'च' शब्द से आवाज़ करना अर्थ ज्ञातव्य है। अतः 'मञ्' धातु का अर्थ सौन्दर्य (सुन्दर होना) और आवाज़ करना होता है । 'मञ्जति' । उणादि के 'षष्ठेधिठादय:-' (उणा-१६६ ) सूत्र से 'ठ' प्रत्यय होने पर, निपातन से 'मञ्जिष्ठा' शब्द बनेगा। 'ऋच्छिचटि'-( उणा-३९७ )से 'अर' प्रत्यय होकर उसे स्त्रीलिंग का 'ङी' प्रत्यय होने पर मञ्जरी' शब्द बनेगा और कृशप-( उणा - ४१८) सूत्र से 'ईर' प्रत्यय होने पर 'मञ्जीर' शब्द होगा। 'कुमुल'( उणा-४८७ ) से 'उल' प्रत्यय होने पर मञ्जुल' शब्द होगा । खलिफलि-' (उणा-५६०) से 'ऊष' प्रत्यय होने पर 'मञ्जुषा' शब्द होगा तथा 'भृमृ'- (उणा-७१६) से बहुवचन के कारण 'उ' प्रत्यय होने पर मञ्जु शब्द होगा ॥२१॥ २. 'पञ् रोधे' धातु, रोध करना/रोकना अर्थ में है। 'नाम्नि पुंसि च' ५/३/१२१ से 'णक' प्रत्यय होने पर 'पञ्जिका' शब्द होगा । उणादि के 'ऋच्छिचटि' - (३९७ ) से 'अर' प्रत्यय होकर 'पञ्जर' शब्द होगा । ॥२२॥ ३. 'कञ्ज शब्दे' धातु, आवाज़ करना अर्थ में है। कञ्जति' । उणादि के 'अग्यङ्गि - ' ( उणा. ४०५) सूत्र से 'आर' प्रत्यय होने पर 'कञ्जार' शब्द कोष्टजाति अर्थ में होता है ॥२३॥ __ट अन्तवाले तीन धातु हैं । १. 'रण्ट प्राणहरणे' धातु 'मार देना' अर्थ में है । 'रण्टति' । उणादि में 'कु' पूर्वक के 'रण्ट' धातु से 'को रुरण्टि'- ( उणा-२८) से 'अक' प्रत्यय होने पर न्या.सिः- १. यही मत पाणिनीय परम्परा का है और उसका निर्देश 'सिद्धान्त कौमुदी' में श्री भट्टोजी दीक्षित ने किया है। २. यही श्लोक पुष्पदंत के महिम्नस्तोत्र में इस प्रकार है । "दीक्षा दानं तपस्तीर्थ ज्ञानं यागादिकाः क्रियाः । महिम्नस्तवपाठस्य कलां नार्घन्ति षोडशीम् ॥" । ३. 'मर्क' शब्द के अन्य अर्थ - वायु, दानव, मन, पन्नग (साँप) और विघ्न करनेवाला होते हैं । ४. भृमृ' (उणा-७१६) सूत्र में 'मञ्' धातु नहीं है तथापि सूत्र में बहुवचन होने से अन्य धातुओ का संग्रह सूचित होता है। यहाँ भी इसी सूत्र से 'उ' प्रत्यय होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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