Book Title: Nyayasangrah
Author(s): Hemhans Gani, Nandighoshvijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 424
________________ चतुर्थ वक्षस्कार (न्यायसूत्र क्र. १४१) ३७१ शब्द किसी ऋषि के नाम के रूप में बनता है । स्वो. न्या. -: 'धमति शब्दायते वायुना अन्तः शुषिरत्वाद् इति धमनः' । भीतर से खोखला/पोला होने से पवन से जो आवाज़ पैदा करे वह 'धमनः', तृणजाति । न्या. सि. -: 'धम्मिलः' अर्थात् केशपाशः। 'कबरी केशवेशोऽथ धम्मिलः संयताः कचा: ' ।(अमरकोश - पं. १६९७ ) । पीयूष अर्थात् अमृत, घी या प्रत्यग्रप्रसवक्षीरविकार अर्थात् गाय या भैंस को प्रसव होने के बाद सात दिन तक का दूध । तुर त्वरणे, त्वरा करना, तोरति । 'आङ्' सहित 'तुर' धातु से 'नाम्युपान्त्य-'५/१/५४ से क प्रत्यय होने पर रोगी अर्थ में 'आतुरः' शब्द होता है । अकेले 'तुर' शब्द का अर्थ शीघ्रगामी होता है। 'तुरो गच्छति' में 'गम्' धातु से 'नाम्नो गमः' - ५/१/१३१ से ड प्रत्यय होने पर 'तुरगः' शब्द होता है। उणादि के 'तक'- ( उणा -१८७) सूत्र से उपलक्षण से इसी तुर धातु से भी अण प्रत्यय होने पर 'तोरणम्' और 'नाम्युपान्त्य'- (उणा ६०९) से कित् 'इ' प्रत्यय होकर 'तुरि' शब्द बुनकर के एक साधन के अर्थ में होता है । ॥५९॥ तन्द्रि सादमोहयोः, साद अर्थात् खिन्न, मोह अर्थात् मूढ़ता । तन्द्रते, ततन्द्रे, तन्द्रितः । तन्द्रा अर्थात् आलस । यहाँ 'क्तेटो गुरोः'- ५/३/१०६ से अ प्रत्यय होता है । उणादि के तृस्तृ'-(उणा७११) सूत्र से ई प्रत्यय होने पर तन्द्रीः अर्थात् समोहनिद्रा ॥६०॥ ल अन्तवाले छः धातु हैं । १. चुल परिवेष्टने, चोलति । 'नाम्युपान्त्य-'५/१/५१ से क प्रत्यय होने पर 'निचुलः' शब्द होता है, अच् प्रत्यय होने पर 'चोलः' शब्द बनता है ॥६१॥ २. उल दाहे, जलाना । ओलति । उणादि के 'निष्कतुरुष्क' ( उणा-२६) से क प्रत्यय होने पर निपातन से 'उल्का' शब्द बनता है । 'शंबूक-' (उणा-६१) सूत्र से ऊक प्रत्यय होकर निपातन से 'उलूकः' शब्द बनता है । 'विष्टपोलप-' (उणा-३०७) से अप प्रत्यय होकर निपातन से उलपः शब्द घास की एक जाति अर्थ में होता है। उसी प्रकार 'उले:'-(उणा - ८२८) सूत्र से कित् अक्षु प्रत्यय होने पर 'उलक्षुः' शब्द भी घास की एक जाति अर्थ में होता है ॥६२॥ स्वो. न्या. -: 'तोरन्ति उत्सुकीभवन्ति अस्मिन् आगता गृहादि प्रवेशार्थे इति तोरणम् । आये हुए अतिथि इत्यादि को घर में प्रवेश करने के लिए जिससे उत्सुक हो जाते है वह 'तोरण' । 'ओलति दह्यतेऽनेनाश्रितं गृहादिकमिति उलूकः' आश्रित गृह इत्यादि को जला दें वह उलूकः' । न्या.सि. -: शम्बूक-शाम्बूक-वृधूक-(उणा-६१) सूत्र की बृहवृत्ति में 'अलेरुच्चोपान्त्यस्य'- कहकर अल धातु से उसकी सिद्धि की है जबकि 'निष्क-तरुष्क- (उणा-२६) सत्र की बहवत्ति में उलक शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए 'ज्वलेरुलादेशश्च, उलेः सौत्रस्य वा' कहा है, अतः ज्वल धातु और सौत्र उल धातु से भी 'उलूक' शब्द की सिद्धि हो सकती है। ___ 'लुल कम्पने, लोलति, लुलितम्' । उणादि के कुलिलुलि-' ( उणा-३७२) सूत्र से कित् आय' प्रत्यय होने पर 'लुलायः' शब्द होता है । ॥६३॥ १. 'तुर' शब्द कोश में 'तुरी' के रू पमें है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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