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लाराधना
आश्वासा
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का खुलासा इस प्रकाशब्दका अर्थ समझना मानना पडेगा।
हुई शंका अब इस का उत्तर सुन लीजिये-उच्चारण करना इस अर्थमें ही उपदिष्ट शब्दका प्रयोग है अन्य अर्थमें नहीं है ऐसा सिद्ध करनेके लिये आपके पास जी भार नहीं है.
जैसे 'गां दोग्धि ' इस वाक्यमें गोशब्दका अर्थ गाय ऐसा होता है अर्थात् माय इस अर्थमें गोशब्द का प्रयोग जैसा होता है उसी तरह वाणी, स्वर्ग, पृथ्वी इत्यादि अर्थोमें भी गोशब्दका प्रयोग देखा जाता है. उसी तरह उपदिष्टशब्द का प्रयोग अन्यार्थ में भी होता है. जैसे 'उपदिष्टमाप किं न वेत्ति' इस वाक्यमें उपदिष्ट शब्द 'कथितं ' कहा हुवा इस अर्थमें है ऐसा अनुभव आता है. इसको मानना पडेगा ही. जिस शब्दका जो अर्थ प्रकरणादि से योग्य मालूम होता है वही उस शब्दका अर्थ समझना चाहिये,
गाथामें जो पबयण शब्द है उसका खुलासा इस प्रकार है जिसके द्वारा जीयादिक पदार्थ कहे जाते हैं अथवा जिसमें जीवादिक पदार्थ कहे हैं उसको प्रवचन कहते हैं अर्थात् जिनश्वरके आगमको प्रवचन कहते हैं. प्रवचन शब्दकी निरुक्ति आचार्य इस प्रकार कहते हैं--'प्रोच्यन्ते जीवादयः पदार्था अनेन अस्मिमिति वा प्रवचनं जिनागमः' जिनेश्वरके वचनोंमें प्रकर्षता अर्थात् उत्कृष्टता आनेका कारण यह है कि उनके वचन दृष्टष्टप्रमाणोंसे अर्थात् प्रत्यक्षानुमानादि प्रमाणोंसे अविरुद्ध सिद्ध होते हैं. और वे वस्तुके यथार्थ स्वरूपका अनुसरण करनेवाले हैं. ऐसे प्रवचनके द्वारा जो जीवादि पदार्थ कहे गये हैं उनको भी माहचर्यसे अथवा अभिधेयाभिधायकसंबंध होनेसे 'प्रवचन ' कह सकते हैं.
___ गाथामें जो तु ग्रन्द है उसकी सहहह 'इम कियापदकं ग योजना करनी चाहिये. अर्थात विवचित जिनागमके. जीवादि अथोंमें जो श्रदान करता ही है यह मम्याटि है ऐसा आभिप्राय उससे व्यक्त होता है.
यह सभ्यन्दष्टि जीव असत्य पदार्थका भी श्रदान करता है परंतु वह तब तक असत्य पदार्थके उपर अदान करता है जब तक वह गुरुने मेरको असत्य पदार्थका स्वरूप कहा है यह नहीं जानता है. जब तक यह असत्य पदार्थका श्रद्धान करता है तबतक उस गुरुने आचार्ययरंपराके अनुसार जिनागमके जीरादितत्वका म्वरूप कहा है और जिनेंद्र भगवानकी आज्ञा प्रमाणभूत माननी चाहिये ऐसा भाव हृदयमें रखता है अतः उसके सम्यग्दशनमें हानि नहीं है. बह मिथ्यादृष्टि नहीं गिना जाता है.
सनकी आज्ञाके ऊपर उसका प्रेम रहता है, वह आज्ञारुचि होनेसे सम्यग्रष्टि ही है. ऐसा इस गाथाका भाष है,
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