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बहुवचन है। इसका सामान्य अर्थ है कि कालक्रमानुसार घटनाओं का विवरण दिया
जाये ।
अँग्रेजी में History शब्द का प्रयोग किया जाता है । इसका भी सामान्य अर्थ Continuous methodical record of public events है; परन्तु इसमें किसी राष्ट्र अथवा जन-समुदाय के सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास का अध्ययन भी अभिप्रेत है; किसी व्यक्ति, जन-समुदाय, जाति, राष्ट्र और धर्म व सम्प्रदाय या विचारधारा से सम्बन्धित घटनाओं का क्रमिक विवरण तथा वस्तुनिष्ठ और तुलनात्मक अध्ययन भी इससे अभिप्रेत है; और वर्तमान में 'इतिहास', 'तवारीख' और History से इसी का बोध सामान्यतः होता है ।
पुराण
भारत में प्राचीन काल में इतिहास-लेखन का इस रूप में प्रचलन नहीं रहा, वरन् पुराण के रूप में घटनाओं का कथन किया जाता रहा। पुराण-लेखन का उद्देश्य आराध्य महापुरुषों की भक्ति से प्रेरित होकर इस प्रकार चित्रण करना था कि उनके प्रति श्रद्धाभक्ति में वृद्धि हो; जिसके परिणामस्वरूप पुराण, चरित और महाकाव्य के रूप में कथानकों को निबद्ध किया गया। इसे अनुश्रुतिगम्य इतिहास के रूप में मान्यता दी गयी। इसमें सर्वव्यापक दृष्टि के लिए अवकाश नहीं था, वरन् अपने आराध्य को महिमा - मण्डित करने की भावना मूलभूत थी। जैन परम्परा में पुराण और इतिहास के अन्तर को आचार्य जिनसेन ने महापुराण में इंगित करते हुए बताया है कि पुराण वह है, जिसमें महापुरुषों का वर्णन किया जाये; और इतिहास वह है, जिसमें ऐसी अनेक कथाओं का जिनमें 'यहाँ ऐसा हुआ' रचनाकार घटनाओं का निरूपण हो । 'इतिहास', 'इतिवृत्त' और 'ऐतिह्य' समानार्थक हैं।
पुराण को ब्राह्मणीय साहित्य में परिभाषित करते हुए कहा गया है
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्चलक्षणम् ।।
अर्थात् पुराण में सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (विनाश), वंश, मन्वन्तर (मनुओं के बीच का युग), तथा वंशों के चरित (वंशानुगत इतिहास) का समावेश होता है। जैन पुराणों पर भी यह परिभाषा सुसंगत है। महापुराण के रचयिता जिनसेन ने आदिपुराण के प्रथम सर्ग के श्लोक 20-23 में उल्लेख किया है कि पुराण में पुरातन घटनाओं का कथन होता है (पुरातनं पुराणं स्यात् तन्महन्महृदाश्रयात्) । परन्तु महापुराण से तात्पर्य है कि इसमें महापुरुषों का कथन किया गया है, अथवा यह भी कि महान् व्यक्तियों द्वारा यह कथन किया गया है, अथवा यह भी कि यह महान श्रेय की प्राप्ति का मार्ग दिखाता
30 :: जैनधर्म परिचय
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