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... आठ कर्म तथा आत्मा का शुद्ध तथा विकृत स्वरूप , कर्म | आत्मा का शुद्ध स्वरूप — आत्मा का विकृत स्वरूप
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१ ज्ञानावरण | अनन्त ज्ञान .
अज्ञान .... २ दर्शनावरण | अनन्त दर्शन अदर्शन, निद्रा ३ वेदनीय स्वाभाविक হান, অহনা | अव्याबाध सुख
मिथ्यात्व, अविरति, राग४ मोहनीय सम्यग्दर्शन, वीतरागता र द्वष, कषाय, काम,
। हास्यादि वगेरे।। ५ आयुः कर्म | अजर, अमर-अक्षयता, जन्म, जीवन, मरण,
। शरीर, इन्द्रिय, चाल, यश, ६ नाम कर्म । अरूपिता
अपयश, सौभाग्य, दुर्भाग्य
(आदि। ७ गौत्र कर्म | अगुरूलघुत्व उच्चकुल, नीच कुल । ८ अन्तरायकर्म
दान, लाभ, भोग, | कृपणता, दरिद्रता, उपभोग, वीर्यलब्धि | पराधीनता, दुर्बलता।
___ ये कर्म आत्मा में अति तीव्र दु:ख का अग्नि प्रकट करते हैं, अत: ये ईधन-काष्ठ के समान हैं। ऐसे इन कर्मों को शुक्ल ध्यानाम्नि से जिन्होंने जला डाले हैं, अर्थात् इन कर्मों के स्वभाव का नाश करके • उन्हें दूर कर दिया है ऐसे श्री वीर परमात्मा हैं।
प्रश्न- मिथ्यादर्शन अविरति आदि से, एकत्रित किये कर्म अकेले शुक्ल ध्यान से कैसे दूर हो जाते हैं ?