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युगलिक के वालाग्र.... लीख, जू, यवमध्य तथा अंगुल होते हैं। फिर क्रमशः २४ अंगुल का १ हाथ, ४ हाथ का धनुष्य तथा २००० धनुष का गाऊ या कोस और ४ गाऊ या कोस का १ योजन ।
(३)काल प्रमाण में भी वे ही दो भेद हैं। १. 'प्रदेशनिष्पन्न प्रमाण १ समय २ समय इत्यादि । (२) 'विभाग निष्पन्न' में असंख्य समय की १ आवलिका, १,६,७७,२१६ आवलिका का १ मुहूर्त अथवा दूसरे तरह से ७ प्राण=१ स्तोक, ७ स्तोक का १ लव, ७७ लव का १ मुहूर्त । ३० मुहूर्त की एक अहोरात्रि । ८४ लाख वर्ष का एक पूर्वांग, ८४ लाख पूर्वाग का १ पूर्व, ...यावत् शीर्षप्रहेलिका । असंख्य वर्षों का एक पल्योपम । १० कोटाकोटि पल्योपम का १ सागरोपम तथा १० कोटाकोटि सागरोपम की १-१ अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी और दोनों मिलकर १ काल चक्र। अनन्त काल चक्र का १ पुद्गल परावर्त ।।
(8) भाव प्रमाण : इस के तीन भेद है : गुण प्रमाण, नय प्रमाण तथा संख्या प्रमाण । गुण प्रमाण में भी दो प्रभेद हैं :जीवमुण प्रमाण तथा अजीव गुण प्रमाण। जीव गुण प्रमाण में ज्ञान दर्शन व चारित्र जीव के तीन गुण हैं । ज्ञान प्रमाण में चार प्रतिभेद हैं : प्रत्यक्ष, अनु न,
उपमान तथा आगम । प्रत्यक्ष में:-इन्द्रिय प्रत्यक्ष तथा नोइंद्रिय (मन) प्रत्यक्ष ।
अनुमान में:-पूर्ववत् शेषवत् तथा दृष्ट साधयंवत् तीन प्रभेद हैं । पूर्वोपलब्ध चिन्ह से पहचाना नाय उदा० तिल, मस, क्षत आदि से पुत्र को पहचाने वह पूर्ववत्। शेषवत् में कार्य कारण गुण अवयव आश्रय पर से पहचाने उदा० हेषारव से अश्व, तंतु से पट, (धूम से अग्नि), गंध से पुष्प, शृङ्ग से भंसा, तथा