________________
( २२९ )
११) अनित्य भावना : सभी मनपसन्द सगे स्नेही जनों का संयोग, मनपसन्द समृद्धि. मनपलन्द शब्द रूप रस यादि विषयों के सुख और मनपसन्द सत्ता सन्मान आदि सम्पत्ति तथा आरोग्य. देह, यौवन, आयुष्य सभी अनित्य है, नाशवन्त हैं। यदि उन पर जीव राग, ममता आसक्ति करेगा, तो इन सब के चले जाने पर कितना दुःख होगा ? अविनाशी प्रात्मा इन नाशवन्त पदार्थों पर स्नेह क्यों करें?
(२) अशरण भावना : जहां जन्म जग मृत्यु का भय सिर पर मंडराता है, जहां अनेक प्रकार की व्याधियों की वेदना से पीड़ा होती रहती है. ऐसे संसार में जीव को शरण किस वस्तु का ? कौन उसकी रक्षा करता है ? जोवन में सिर्फ एक बार और वह भी अनजान में बांधे जाने वाले आयुष्य के समय यदि मन के भाव अशुद्ध रहे तो दुर्गति का आयुष्य बंध जाने से वहीं जन्म लेना पड़ता है। इसमे से अब अच्छी पत्नी, पुत्र या सम्पत्ति आदि में से कौन शरण दे कर बचा सकता है ? एकमात्र जिनेश्वर भगवन्त के वचन बिना जीव को किसी का भी शरण नहीं है।
प्रश्न- तो क्या जिनेश्वर का शरण यहां के व्याधि, जरा, मृत्यु या रोग को रोक देता है ? __ उत्तर-नहीं। पर यह शरण इसलिए है कि (१) इन सब आपत्तियों में चित्त को वह समाधि-स्वस्थता देता है। क्योंकि वह स्व पर का भेद समझाता है जिससे व्याधि आदि आपत्ति वे दुःखरूप नहीं लगती। (२) फिर 'जितनी आपत्ति उतनी कर्मों की सफाई' उसका आनन्द रहता है। (३) साथ ही भविष्य में जन्म जरा-मृत्यु आदि की पीड़ा का हमेशा के लिए अन्त लाता है।
(३) एकत्व भावना : इस संसार चक्र में जीव को अकेले ही मरना पड़ता है, अकेले ही जन्म लेना पड़ता है, अकेले