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श्रागम उवएसाऽऽणा - मिश्र जंजिरापणीयाणं सद्दहणं, धम्मज्झाणस्म तं लिंग | ६७ ||
भावाणं
अर्यः - श्री जिनेश्वर भगवन्त कथित ( द्रव्यादि पदार्थ ) की आगम सूत्र, तदनुसारी कथन, सूत्रोक्त पदार्थ या स्वभाव से श्रद्धा करना यह धर्मध्यान का ज्ञापक चिह्न है ।
विशेष भी लिये जा सकते हैं कि जो लेश्या के पीछे काम करते हैं ! यह लेश्या द्वार हुआ ।
धर्म ध्यान के ज्ञापक चिह्न (लिंग)
अब लिंग द्वार का वर्णन करते हैं:
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विवेचन :
प्रथम लिंग श्रद्धा
जीव धर्मध्यान में प्रवृत्त है, उसका प्रथम ज्ञापक चिन्ह यह है कि उसमें वीतराग सर्वज्ञ श्री तीर्थंकर भगवन्तों के द्वारा प्ररूपित धर्मास्तिकायादि छः द्रव्यों और उसके गुण-पर्यायों की श्रद्धा हो । यह श्रद्धा आगम, उपदेश, आज्ञा या निसर्गं से खड़ी होती है । 'आगम' = सूत्र; 'उपदेश' = सूत्रानुसारो देशना ; 'आज्ञा' = सूत्रोक्त पदार्थ; 'निसर्ग' = स्वभाव
१. आगम : याने जिनोक्त सूत्र पढ़े तब उसमे कथित जिनोक्त द्रव्यादि पदार्थों की श्रद्धा हो । यह आगम से श्रद्धा हुई कहलाती है । गोविन्दाचार्य हरिभद्रसूरि आदि को जिनागम पढ़ते पढ़ते श्रद्धा हुई ।
२. उपदेश : कइयों को जिनागम अनुसारी उपदेशदेशना व्याख्यान सुन कर जिनोक्त तत्त्व की श्रद्धा होती है । मूल आगम, जिनागम तो कम लोगों को ही मिलता है, पर आचार्यादि का आगमानुसारी उपदेश सुनने का तो बहुत सों को मिल जाता है । वे इससे तत्त्व श्रद्धा वाले होते हैं ।
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