Book Title: Dhyan Shatak
Author(s): 
Publisher: Divyadarshan Karyalay

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Page 315
________________ ( २९० । ते य विसेसेण सुभासवादओणुत्तरामरसुहाइं च । दोण्हं सुक्काण फलं परिनिव्वाणं परिल्लाणं ॥९४।। अर्थः--यही विशिष्ट रूप के शुभ आश्रव आदि और अनुत्तर देवलोक के सुख पहले दो शुक्ल ध्यान का फल है और अन्तिम दो का फल तो मोक्षगमन है। परम्पग तक पहुँचाने वाले पुण्य-बन्ध आदि फल को उत्पन्न करते हैं। शुक्ल ध्यान के फल अब शुक्ल ध्यान के फल कहते हैं:विवेचन: शुक्ल ध्यान में से पहले दो शुक्ल ध्यान 'पृथकत्व वितर्क सविचार' और एकत्व वितर्क अविचार' ध्यान के फल पूर्वोक्त शुभाश्रव आदि हैं परन्तु वे विशिष्ट स्वरूप के उत्पन्न होते है। अर्थात् अद्भुत उच्चकोटि के पुण्य-बन्ध, कर्म-निर्जरा आदि होते हैं। इसमें देवी सुखों में सबसे ऊंचे अनुत्तर विमानवासी देवलोक के सुख उत्पन्न होते हैं। उपशम श्रेणा में चढ़े हुए मुनि शुक्लध्यान से ऐसी फलोत्पत्ति के अनुसार, श्रेणी से गिरते हुए आयुष्य पूर्ण हाने पर, अनुत्तर विमान में जन्म लेते हैं। अन्तिम दो शुक्ल ध्यान तो केवलज्ञानी को होते हैं। अत: इससे तो सर्व कर्म-क्षय होने के कारण फल के रूप में मोक्ष-गमन होता है। ___यह तो धर्मध्यान व शुक्लध्यान के विशेष फल हैं, पर सामान्यत: ये दोनों ध्यान संसार के प्रतिपक्षी (विरोधी) है अर्थात् संसार उत्पन्न नहीं करते।

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