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अंबर - लोह - महीणं कमसो जह मल-कलंक - पंकाणं । सोज्झा-वणयण- सोसे साहेंति साहेंति जलाणलाइच्चा ॥ ९७ ॥ तह सोज्झाइसमत्था जीवंबर - लोह - मेहणिगयाणं । झाण जलाऽणल-सूरा कम्ममल - कलंक -पंकाणं ॥ ६८ ॥
अर्थ :-- जिस तरह पानी अग्नि और सूर्य क्रमश वस्त्र, लोहे और पृथ्वी के मैल कलंक और कीचड़ का ( यथासंख्य ) शोधन, निवारण और शोषण करते हैं, उसी तरह ध्यान रूपो पानी अग्नि व सूर्य जीव स्वरूप लोहे वस्त्र और पृथ्वा में रहे हुए कर्म स्वरूप मैल कलंक व पंक के शोधन आदि में समर्थ हैं ।
संवर निर्जरा का साधन ध्यान प्रधान तप होने से ध्यान मोक्ष का कारण बन जाता है ।
ध्यान से कर्म नाश के ३ दृष्टान्त
इसी वस्तु को सरलता से समझाने के लिए दृष्टान्तों द्वारा उसका प्रतिपादन करते हैं -
विवेचन :
कर्मसंयोग से संसार तथा कर्मवियोग से मोक्ष होता है । तो कर्मवियोग करवाने में ध्यान कितना अद्भुत काम करता है, वह दिखाने वाले ३ दृष्टान्त पानी अग्नि स्वरूप इस तरह से है:
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और सूर्य हैं। उनका
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( १ ) जिस तरह पानी कपड़े के मैल का शोधन करता है, उसी तरह ध्यान रूपी पानी जीव रूपी वस्त्र के कर्म - मैल को साफ करता जाता है । अलबत्ता वस्त्र का मैल धोने में पानी के साथ क्षार आदि की जरूरत है, किन्तु पानी के बिना वे सब बेकार हैं;