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तापो सोसो भेओ जोगाण झागओ जहा निययं । तह तावसोसभेया कम्सस्स वि झाइणो नियमा ॥९९।।
अर्थ:--जिम तरह ध्यान से मन वचन काया के योगों का अवश्य तपन, शोषगा और भेदन होता है, उस तरह ध्यानी को कम का भी अवश्य तपन, शोषण, भेदन होता है पानी हो तो ही क्षार आदि से मैला वस्त्र साफ होता है और कुछ तुरन्त के मल दाग तो अकेले पानी से भी साफ हो जाते हैं। अतः यहां मुख्यतः पानी का ही दृष्टान्त लिया।
(२) जैसे खान में से निकले हुए लोहे के कलंक याने मिश्रित अन्य वस्तुएं अग्नि से गरम करने से दूर होती हैं, उसी तरह जीवरूपी लोहे में से कर्मकलंक ध्यान रूपी अग्नि से गरम हो कर दूर हो जाते हैं।
(३) इसी तरह जैसे पृथ्वी पर का कीचड़ वर्षा के पश्चात् धूल वाले रास्ते पर का कीचड़ सूर्य की गरमी से सूख जाता है, उसी तरह जीव रूपी पृथ्वी पर का कर्मकी चड़ ध्यान रूपी सूर्य की गरमी से गरम हो कर सूख जाता है।
इस तरह जीव पर चिपके हुए कर्ममैल को ढोला बनाकर साफ कर देने में ध्यान पानी का काम करता है; जीव में मिश्रित हो गये कर्म को जलाकर खतम करने में ध्यान अग्नि के समान है
और जीव पर के कर्मकीचड़ को सुखाकर नष्ट करने के लिए ध्यान सूर्य के समान काम करता है।
ध्यान का योग और कर्म पर प्रभाव ___ध्यान से कर्मनाश होता है इसमें योग का चौथा दृष्टान्त बताते हुए ध्यान का योग और कर्म पर प्रभाव बताते हैं: